स्वास्थ्य रक्षक कविता ( १ )
अरहर दाल जलाय के, दधि में देय मिलाय |
पकी खाज पर लेपिये देवे रोग मिटाय ||
गुड़ तोला प्राचीन ले, चूना माशा चार |
दोउ मिलाकर खाइए, देवे दर्द मिटाय ||
त्रिफला काला नमक को, पानी साथ सनाय |
सबहिं बराबर मापकर, नीबू रस मिलवाय ||
झरबेरी सी गोलियाँ, घोंट पीस बनवाय |
दो गोली सेवन करें, भूख बहुत बढ़ जाय ||
पत्ती पीसें नीम की, लीजै रस निकाल |
आधा तोला पीजिए, पेट कीट मिट जाय ||
पत्ती पीसें नीम की, लीजै रस निकाल |
आधा तोल पीजिये, पेटकीट मिट जाय ||
स्वास्थ्य रक्षक कविता (२)
दिन में तो चंदा चलै ,चलै रात में सूर |
तो यह निश्चय जानिये, प्राण गमन बहु दूर||
बायीं करवट सोइये, जल बायें स्वर पीव |
दायें स्वर भोजन करै, सुख पावत है जीव ||
अधिक गर्म जो पेय पिये, और अन्न जो खाय |
वृद्धावस्था के पूर्व ही, बत्तीसी झड़ जाय ||
जो दातून बबूल की ,नित्य करै मन लाय |
टीस मिटै मजबूत हो, पायरिया मिट जाय ||
नीम दतूनी जो करै, भूनी अन्न चबाय |
दूध बयारी जो करै,ता घर वैद्य न जाय ||
स्वास्थ्य रक्षक कविता…( २ )
इमली पत्ती पीसकर, लीजै नमक मिलाय |
मट्ठा के सग पीजिये, पेचिस देय मिटाय ||
नीम की पत्ती तोड़कर, मधुरस संग पिसाय |
फोड़ा ऊपर बांध दे, मव (पीब) को देत बहाय ||
हर्र बहेरा आँवला, घी शक्कर संग खाय |
हाथी दाबे कांख में, साठ कोस ले जाय ||
जो ताम्र के पात्र में, पिये रोज जल छान |
चर्म रोग सब दूर हों, मनुष्य होत बल्वान ||
पीली पात मदार (आक) में, दीजै घृत लगाय |
गरम-गरम रस डालिए कर्ण-रोग मिट जाय ||