Saturday, January 25, 2014

स्वास्थ्य रक्षक कविता

स्वास्थ्य रक्षक कविता ( १ )

अरहर दाल जलाय के, दधि में देय मिलाय |
पकी खाज पर लेपिये देवे रोग मिटाय ||

गुड़ तोला प्राचीन ले, चूना माशा चार |
दोउ मिलाकर खाइए, देवे दर्द मिटाय ||

त्रिफला काला नमक को, पानी साथ सनाय |
सबहिं बराबर मापकर, नीबू रस मिलवाय ||
झरबेरी सी गोलियाँ, घोंट पीस बनवाय |
दो गोली सेवन करें, भूख बहुत बढ़ जाय ||

पत्ती पीसें नीम की, लीजै रस निकाल |
आधा तोला पीजिए, पेट कीट मिट जाय ||

पत्ती पीसें नीम की, लीजै रस निकाल |
आधा तोल पीजिये, पेटकीट मिट जाय ||


स्वास्थ्य रक्षक कविता  (२)

दिन   में तो  चंदा चलै ,चलै  रात में  सूर |

तो यह निश्चय जानिये,  प्राण गमन बहु दूर||

बायीं  करवट   सोइये,  जल  बायें स्वर  पीव |

दायें स्वर  भोजन करै,  सुख  पावत है  जीव ||

अधिक गर्म जो पेय पिये, और अन्न जो खाय | 

वृद्धावस्था  के  पूर्व ही, बत्तीसी झड़ जाय || 

जो दातून   बबूल की ,नित्य करै  मन लाय |

टीस मिटै  मजबूत हो, पायरिया  मिट जाय ||

नीम   दतूनी  जो करै, भूनी अन्न   चबाय  |

दूध बयारी जो करै,ता घर वैद्य न जाय  ||

 स्वास्थ्य रक्षक कविता…( २  )

इमली पत्ती पीसकर, लीजै नमक मिलाय |

मट्ठा के सग पीजिये,   पेचिस देय मिटाय ||

नीम की पत्ती तोड़कर,   मधुरस संग पिसाय |

फोड़ा ऊपर बांध दे, मव (पीब) को देत बहाय ||

हर्र बहेरा आँवला,  घी शक्कर संग खाय  |

हाथी दाबे कांख में,   साठ कोस ले जाय ||

जो ताम्र  के पात्र में,    पिये रोज जल छान |

चर्म रोग सब दूर हों, मनुष्य होत बल्वान ||

पीली पात मदार (आक) में,  दीजै घृत लगाय |

गरम-गरम रस डालिए कर्ण-रोग मिट जाय ||