Sunday, July 12, 2015

दसरों  के अंतिम संस्कार  में अपने सस्कारों का अन्त क्यों ?

     पढ़ने में ये subject जितना light  लग रहा हो , समझने में उतना ही serious  लगने लगेगा !  जो दूसरों की body  की death को seriously  नहीं लेते ,वह अपनी life  की importance को seriously   कैसे ले सकते हैं ?  

   these days किसी के भी अंतिम संस्कार का नज़ारा ध्यान से देखने पर realise होने लगता है कि,संवेदनशीलता ,   senstivity का level कितना नीचे आ गया है ! किसी का तो शरीर जल रहा है या मिटटी में गल रहा है ,  

     और लोग एक दुसरे से हंस कर पूंछते है की और सुनाओ क्या हाल है       'business कैसा चल रहा है        'अरे भाई ! मौसम आज बहुत ख़राब है !"      इसी बीच मोबाइल खूब बजते हैं ! हाँ हेलो , दे दो उसे payment, बस अभी पहुँच रहे हैं ,  यहाँ पर देर कुछ ज्यादा ही  हो गई है,क्या करें समय से पहले निकल भी तो नहीं सकते हैं ! अरे यार , लोग क्या कहेंगे !'                        दिखावा ! दिखावा !! दिखावा !!! Total FakeRelation  Veryfew moved by the tramatic emotional break down of the near ones of deceased. बिलकुल   

       भूल जाते हैं कि हमारी body का भी अन्त ऐसा होगा ! ऐसी बेरुखी और बेवफाई पर गुस्सा ,तरस और हंसी तीनो ही आती हैं !  

      जब दुसरो के दुःख हम feel नहीं करते ,तभी हमारे घर और जीवन में दुःख आते हैं ! दुःख से realisation तो कुदरत-God ने तब करवाने ही हैं ! So, हम sincere and sensible क्यों n हो जाएँ , अपने पूर्वजों के दया , करुणा,  love harmony, co-opereation के संस्कारों का अनुपालन करते हुए ? 

        दुसरो  के  दुःख   में ,  जब   हमारा   मन   बिलकुल    भी   नहीं      होता             Sad, Then  हमारी  life में भी  difficulties  आनी ही हैं ,  उससे भी ज्यादा               Bad, Money और power के नशे में , पढ़े-लिखे और  mature भी हो जाते हैं            Mad, So, death के आने के पहले हम कर लें ऐसे कर्म , जिससे God भी तो हो जाये  Glad 
        आप सब  पढ़ कर विचार करें क्या ऐसा ही होता है ?????

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