Saturday, November 30, 2013

जानवरों पर बढ़ता अत्याचार

जानवरों पर बढ़ता अत्याचार

इसे जरुर पढ़ें इसको पढने से बोल न सकने वाले जानवर मरने से बच सकते हैं| अगर आप एक अच्छे इंसान हैं तो नीचे जो कुछ भी लिखा है उसे जरुर पढ़ें और वीडियों भी देखें। पढ़ने के बाद इस पेज को अपने सभी दोस्तों में शेयर करें।

दुनिया भर में रोजाना 1 करोड़ से भी ज्यादा जानवरों को मारा जाता है। ये जानवर हैं भैंसे, गाय, सुअर, बकरे, भेड़ आदि। इन जानवरों को क्साइखानो में मारा व काटा जाता है। क्या आप जानते हैं इन्हें क्यों मारा जाता है। इसकी असली वजह है हम लोग। कुछ लोग इन जानवरों को काटकर इनका मांस पैसों में बेचते हैं। और इनका मांस खरीदते हैं हम जैसे लोग। हम लोग बाजार में जाकर मांस खरीदते हैं और घर में आराम से पकाकर खा लेते हैं। यदि हम मांस खाना छोड़ दें तो हम इन जानवरों को मरने से बचा सकते हैं। क्योंकि अगर हम लोग मांस नहीं खरीदेंगे तो जो लोग जानवरों को मारकर इनके मांस को बेचने का व्यवसाय करते हैं उन लोगों को जानवरों को मारने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

अब कुछ लोग यह सोच रहे होंगे कि मांस से तो हमें प्रोटीन मिलता है। तो अगर हम मांस खाना छोड़ दें तो हमारे शरीर को प्रोटीन कहाँ से मिलेगा। इसका solution यह है कि मांस के अलावा और भी बहुत सी खाने की चीजों से हमें प्रोटीन मिलता है जैसे दालें, चने, मेवें, दूध, सोयाबीन आदि। तो इसलिए प्रोटीन की चिंता न करें। कुछ लोग और डॉक्टर कहते हैं कि मांस में पाया जाने वाला प्रोटीन ही हमारे शरीर को फायदा पहुंचाता है लेकिन ऐसा बिलकुल गलत हैं। दालों, मेवों, चने और सोयाबीन आदि में मिलने वाला प्रोटीन हमारे शरीर को पूरे तरीके से स्वस्थ रखता है। यह सिर्फ लोगों की अपनी सोच है कि मांस को खाने से ही अच्छा प्रोटीन मिलता है।

तो अब प्रोटीन की परेशानी तो आपकी खत्म हो गई। कुछ लोग सिर्फ स्वाद के लिए मांस खाते हैं, अगर आपको स्वाद चाहिए ही तो ऐसे बहुत से शाकाहारी व्यंजन है जो कि खाने में बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं, आप इन शाकाहारी व्यंजनों को खा सकते हैं। इसलिए अब से आप जानवरों के मांस को बाजार से कभी भी न खरीदें। याद रखिये आपके मांस न खरीदने से मासूम जानवरों की जान बच सकती है। जानवरों को सिर्फ मांस खाने के लिए ही नहीं मारा जाता बल्कि जानवरों की खाल पाने के लिए भी इन्हें मारा जाता है। इसका कारण भी हम लोग ही हैं क्योंकि इनकी शरीर की खाल से कपड़े, जैसे की जैकेट आदि बनाये जाते हैं। बहुत से जूते भी इनकी खाल से बनाए जाते हैं। अगर हम लोग ऐसे कपड़े व जूते पहनना बंद कर दें जो कि जानवरों की खाल से बने होते हैं तो ये बेचारे न बोल सकने वाले जानवर मरने से बच सकते हैं।

क्साइखानो में इन जानवरों का बहुत ही घिनोने तरीके से कत्ल किया जाता है। यदि आप कभी किसी कसाईखाने में गए तो यह सब होते हुए देख आप रो पड़ेंगे। नीचे कुछ कसाईखानों की वीडियों हैं आप उन्हें जरुर देखें। देखें कि किस तरह मासूम लाचार जानवरों को मारा जाता है।। जब आप इन वीडियों को देखेंगे तब आपको पता चलेगा की इन जानवरों के साथ कितना बुरा हो रहा है और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि हम लोग इन जानवरों का मांस खाते हैं, इनकी खाल से बने हुए कपड़े और जूते पहनते हैं आदि। जबकि इन सब चीजों की जरूरत को पूरा करने के लिए हम लोग दूसरे तरीके भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

क्या आप जानते हैं जिन जानवरों को हम लोग रोजाना जान से खत्म कर देते हैं वे जानवर हमारे लिए कितना कुछ करते हैं। गाय, भैंस, भेड़, बकरी ये सब हमें दूध देते हैं, इनके गोबर से खाद बनती है जिससे फल सब्जियों की खेती करने में बहुत मदद मिलती है, इनके गोबर के इस्तेमाल से बिजली भी बनाई जाती है और भी ऐसे बहुत से कार्य हैं जो ये मासूम जानवर हमारे लिए मुफ्त (free) में करते हैं।

                                               

  कुछ लोग सोच रहे होंगे कि जानवरों को तो जंगलों में भी मारा जाता है। जंगलों में जानवर दूसरे जानवर का शिकार करके अपना पेट भरते हैं। यह तो प्रकृति का नियम है। बात सही है लेकिन जिस तरह इंसान इन जानवरों को मारता है वो तरीका बहुत घिनोना और गलत है। जंगलों में जिस तरह एक जानवर दूसरे जानवर का शिकार करता है उस तरीके में और जिस तरीके से इंसान जानवरों को मारता है उसमे जमीन आसमान का फर्क है। नीचे जो वीडियों हैं उनके देखने  से आपको यह फर्क आसानी से पता लगेगा। अब अगर मान लेते हैं कि जंगलों में भी इन जानवरों का शिकार दूसरे जानवरों द्वारा किया जाता है लेकिन कम से कम जंगल में यह जानवर आजादी से और खुले में तो अपना जीवन बिताते हैं। जंगलों में इन जानवरों को खाना पीना सब प्रकृति द्वारा आसानी से मिलता रहता है। जंगलों में यह सभी जानवर एक साथ झुण्ड में रहते हैं एक दूसरे की सहायता करकर बहुत ही ख़ुशी से अपना जीवन बिताते हैं। लेकिन इंसानी वातावरण में यह सभी जानवर एक गुलाम से भी बुरी हालत में रहते हैं। न तो इंसान इन्हें ठीक से खाना खिलाते और न ही इन्हें खुले वातावरण में रखते। इंसान इनकों रस्सियों व जंजीरों से बांधकर रखता है जिसके कारण यह जानवर अपनी जिन्दगी में केवल एक ही जगह पर खड़े और बैठे रहते हैं और थोड़े समय बाद ही इंसान इन्हें कसाईखाने में ले जाता है और इनका बुरे तरीके से कतल कर देता है। जब कसाईखाने में इन जानवरों का कत्ल किया जाता है तो दूसरे जानवर भी उसी जगह मौजूद होते हैं। बेचारे दूसरे जानवर यह सब देखते रहते हैं और उनकी आँखों से आंसू भी निकलते हैं। इस तरह एक के बाद एक जानवर का नम्बर आता जाता है और सभी जानवर अप्राकृतिक तरीके से  मार दिए जाते हैं।

जरा सोचे अगर आपके साथ ऐसा हो तो आपकी क्या मानसिक हालत होगी। क्या आप अपनी पूरी जिन्दगी में रस्सियों और जंजीरों से बंधकर केवल एक ही जगह पर खड़े और बैठे रह सकते हैं। और यदि सभी इंसानों को कसाईखाने में ले जाकर काटा वा मारा जाये और आप भी उन सभी इंसानों में शामिल हो और यह सब आपकी आँखों के सामने हो रहा हो और कुछ देर बाद आपका नम्बर भी आ जाएगा। यहाँ में आपको डरा नहीं रहा हूँ सिर्फ आपको जानवरों की हालत बता रहा हूँ। आप समझ सकते हैं कि बेचारे जानवरों कि मानसिक हालत  क्या होती होगी। बेचारे जानवर बुरे तरीके से डरे रहते हैं उनकी आँखों से आंसू भी निकलते हैं, वे चिल्लाते भी हैं  लेकिन इंसानों के आगे वे कुछ भी नहीं कर पाते। इंसान उन्हें इस तरह से रखता है न तो वे भाग सकते हैं और न ही अपनी जान किसी तरीके से बचा सकते हैं। 

जितने भी जानवरों को हम मांस खाने के लिए मारते हैं वे सभी जानवर बहुत ही शांत, अच्छे और प्यारे स्वभाव के होते हैं लेकिन केवल इनका मांस खाने के लिए हम इनको बुरे तरीके से मार देते हैं। जिन जानवरों को हम मार देते हैं वे सभी इतने प्यारे स्वभाव के होते हैं कि अगर आप इन्हें थोड़ा भी प्यार करें तो यह आपके दोस्त बन जाते हैं। ऐसे दोस्त जो कि आपको आपके माता पिता से भी ज्यादा आपको प्यार करते हैं।

अगर आप इन मासूम जानवरों को बचाना चाहते हैं तो आज से ही मांस खाना छोड़ दें और जानवरों की खाल से बने हुए कपड़े, जूते व अन्य सामानों का उपयोग बंद कर दें। इस Page को अपने सभी दोस्तों में share करें। अगर आप इस पेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों में शेयर करते हैं तो यकीन मानिए इससे अच्छा काम दुनिया में कोई और नहीं होगा।

में एक नई वेबसाईट पर काम कर रहाँ हूँ इस वेबसाईट पर जानवरों से सम्बन्धित सभी विषय लिखे हैं। हर एक विषय को वैज्ञानिक तरीके से अच्छी तरह समझाया गया है। इस वेबसाईट पर वैज्ञानिक तरीके से यह समझाया गया है कि इंसान को जानवरों का मांस खाना चाहिए या नहीं। अभी में इस वेबसाईट पर काम कर रहाँ हूँ जैसे ही यह वेबसाईट पूरी बन जायेगी तो में इसे इंटरनेट पर डाल दूंगा। इस वेबसाईट का नाम भी में इसी पेज पर डाल दूंगा।

People for animals एक ऐसी संस्था है जो कि जानवरों के लिए कार्य करती है अगर आप किसी भी जानवर को बीमार, या बुरी हालत में देखें तो इस संस्था को फोन करें। यह संस्था उस जानवर को बुरी हालत से निकालने के लिए पूरे तरीके से कार्य करेगी। इस संस्था कि अधिक जानकारी के लिए जाएँ

आंवले की चटनी

आंवले की चटनी स्वादिष्ट होने के साथ साथ स्वास्थ्यवर्धक भी होती है|

आंवले की चटनी बनाने के लिए सामग्री

 

275 ग्राम आंवले, डेढ़ लिटर चूने का पानी, 275 ग्राम तेल, 10 -15 ग्राम हिंग, 10 -15 ग्राम जीरा, 10 से 15 ग्राम सौंफ|


बनाने की विधि

  1. सबसे पहले बड़े बड़े कच्चे आंवलों को अच्छी तरह गोद लें और चूने के पानी में 3 - 4 दिनों तक भीगने के लिए रख दें|

  2. इसके बाद ठंडा करके इसकी गुठलियां निकालकर फांके अलग कर दें और थोड़ा थोड़ा सुखाकर मोटा मोटा पीस लें| 3 - 4 दिन बाद इन्हें साफ पानी में धो लें तथा बर्तन में पानी डालकर आंवलों को उबाल लें|

  3. अब कढ़ाई में तेल गर्म करके इसमें हिंग,जीरा,हल्दी व सौंफ डालकर चटकाएं| कुछ समय बाद पिसा मिश्रण डालकर अच्छी तरह पकायें तथा निरंतर चलाते रहें|

  4. इसके बाद नमक डालकर उपर से गर्म मसाला बुर्क दें|

  5. फिर कढ़ाई की आंच से उतारकर चटनी को ठंडा होने तक रख दें| ठंडी होने पर शीशी में भर दें|

  6. इस प्रकार आपकी स्वादिष्ट आंवले की चटनी तैयार है| इसको भोजन के साथ खाएं|

चेहरा खुबसूरत बनाने के नुस्खे

चेहरा खुबसूरत बनाने के नुस्खे

  1. चेहरे पर गुलाबी पन लाने के लिए नहाने से पहले कच्‍चे दूध मे निंबू का रस व नमक मिला कर मलें।

  2. शहद मे ज़रा-सी हलदी मिला कर चेहरे पर लगाएं इससे चेहरे की मैल निकलने से चेहरा साफ व ताज़गी भरा बना रहेगा।

  3. केले को मैश करके उस मे एक चम्‍मच दूध मिलाएं। इसे चेहरे पर लगा कर ठंडे पानी से छिंटे मारें। ऐसा १०-१५ मिनट करने के पश्‍चात चेहरे को थपथपा कर सुखा लें झुर्रियां दुर होंगी।

  4. एक चमच सौफ को पानी मे अच्छी तरह उबालें। जब पाने गाढा हो जाए तो उतनी मात्रा मे ही शहद मिला लें इसे चेहरे पर लगाने के १० मिनट बाद चेहरा धो लें। झुर्रियां दुर होकर चेहरे पर चमक आएगी।

  5. शहद को त्वचा पर मलने से नमी नष्ट नही होती । तरबूजे के गूदे को चेहरे व गर्दन पर मलें । थोड़ी  देर बाद इसे ठंडे पानी से धो लें । नियमित करने से चेहरे के दाग दूर होते हैं

  6. तुलसी के पत्तों का रस निकाल कर उसमे बराबर मात्रा मे नीबूं का रस मिला कर लगाएं । चेहरे की झांईयां दूर होती है ।

  7. चेहरे, गले व बांहों की त्वचा के लिए नीम के पत्ते व गुलाब की पंखुडियां समान मात्रा मे लेकर 4 गुना मात्रा पानी मे भीगो दें । सुबह इस पानी को इतना उबालें कि पानी एक तिहाई रह जाए । अब यदि पानी 100 ml  हो, तो लाल चंदन का बारीक चूर्ण 10 ग्राम मिला कर घोल बनाएं व फ़्रिज मे रख दें । एक घंटे बाद इस पानी मे रुई डुबो कर चेहरे पर लगाएं । कुछ मिनट बाद रगड कर चेहरे की त्वचा साफ़ कर लें । 

  8. अगर आंखों के नीचे काले घेरें हों तो  सोते समय बादाम रोगन उंगली से  आंखों के नीचे लगाएं और 5  मिनट तक उंगली से  हल्के हल्के मलें । एक सप्ताह के प्रयोग से ही त्वचा में निखार आ जाता है और आंखों के नीचे के काले घेरें भी खत्म होते हैं ।

गाजर


गाजर खाने के फायदे

1)गाजर का जूस हमारे शरीर में विटामिन A की कमी को दूर करता है|इसकी कमी से आँखों की बीमारियाँ, त्वचा में सूखापन, बालों का टूटना, नाख़ून खराब होना आदि होतें हैं| विटामिन A हमारे शरीर की हड्डियों और दांतों के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है|

2)गाजर का जूस हमारी आँखों की रौशनी को बढ़ाता है|

3)जिन लोगो की सेक्स प्रणाली में कमी होती है उन लोगो के लिए ये गाजर का जूस बहुत ही फायदेमंद होता है|

4)चिकित्सा अध्ययनों ने यह साबित किया है कि गाजर फेफड़ो के कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर और कोलोन कैंसर के खतरे को कम करता है।

5)गर्भवती महिला के लिए ये जूस बहुत फायदेमंद है| इसको पीने से उसका आने वाला बच्चा स्वस्थ पैदा होता है|

6) गाजर का जूस दिल के रोगियों को बहुत फायदा पहुँचाता है|

7)गाजर हमारी त्वचा के लिए बहुत फायदेमंद होती है।

8)गाजर हमारे शरीर में से विषैले पदार्थों को बाहर निकाल देती है।

9)गाजर खाने से हम लम्बे समय तक जवान बने रह सकते हैं।

10)गाजर का जूस  सभी लोगो को पीना चाहिए लेकिन जिन लोगो को शुगर की बिमारी है उन्हें गाजर का जूस नहीं पीना चाहिए|

अमरुद

अमरुद खाने के फायदे

  • अमरुद फेफड़ो को स्वस्थ रखता है|

  • अमरुद खाने से हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है|

  • ये खून के बहाव को ठीक रखता है जिससे ह्रदय स्वस्थ रहता है।

  • ये दमा के रोगियों को फायदा पहुँचाता है|

  • अमरुद खाने से पेट की बदहजमी की समस्या ठीक हो जाती है|ये  कब्ज को भी ठीक कर देता है।

  • अमरुद मोटापे को भी कम करता है|

  • अमरुद में अधिक मात्रा में विटामिन c पाया जाता है जो की शरीर के प्रतिरक्षा तन्त्र को मजबूत बनाता है जिससे हमें सर्दी, खांसी, जुकाम जैसे बीमारियाँ नहीं होती|

  • ये रक्तस्त्राव के रोग को भी ठीक कर देता है|

  • इसमें केल्शियम भी अच्छी मात्रा में पाया जाता है जो की हमारे शरीर की हड्डियों और दाँतों को स्वस्थ रखता है|

Friday, November 29, 2013

सर्दियों में स्वस्थ रहने के सूत्र

सर्दियों को स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत अनुकूल मौसम माना जाता है। इस सीजन में पाचन शक्ति काफी मजबूत रहती है, भूख बढ़ती है, संक्रमण फैलाने वाले वायरस निष्क्रिय हो जाते हैं तथा व्यक्ति तुलनात्मक रुप से अधिक स्वस्थ रहता हैं लेकिन सर्दियां हृदय, अस्थमा, जोड़-हड्डी तथा एलर्जी के रोगियों के लिये कई चुनौतियां पैदा करती है जिनका इस मौसम में खास ध्यान रखने की जरुरत होती है। सर्दियों में रक्त धमनियां सिकुड़नें के कारण सर्वाधिक हृदयघात होते हैं। सर्दी को सबसे अधिक स्वास्थ्यकारी मौसम कहा जाता है। पश्‍चिमी देशों के लोगों के अच्छे स्वास्थ्य के पीछे वहां का ठण्डा मौसम तथा सुखद तापमान जिम्मेवार है। हमारी कुछ लापरवाही के कारण ही इस मौसम में रोग घेरता है। यहां सर्दियों में स्वस्थ रहने के सात नुस्खे दिये जा रहे है जिनका अनुसरण कर शरद ऋतु का पर्याप्त आनन्द लिया जा सकता है।

वार्म ड्रेसअप : इस मौसम में कभी सर्दी कम तो कभी ज्यादा होती है। इस लिये कपड़े पहनने में लापरवाही न कर॓ं। सर्दी कम रहने पर भी गर्म कपड़े से परहेज न कर॓ं। सिर, हाथ तथा पैरों को कवर करने का खास ख्याल रखें क्योंकि शरीर में ठण्ड का प्रकोप सबसे पहले सिर, पैर, नाक,छाती व कान से शुरू होता है।

गरम भोजन व पेय : भारतीय परम्पराओं व रीति रिवाजों में मौसम के हिसाब से खान-पान निर्देशित है। सर्दियों में शीतल पेय, आइसक्रीम, दही की लस्सी आदि ठण्डे पदार्थों को सेवन पूरी तरह से त्यागना चाहिए। इसके स्थान पर कॉफी, दूध, छाछ, सूप, हलवा आदि ऊर्जावान खाद्य व पेय पदार्थों का सेवन कर॓ं।

लहसुन एक औषधीय पदार्थ है जिसके प्रयोग से छोटी-बड़ी बीमारी में लाभ होता है। लहसुन का नियमित सेवन हृदय व एलर्जी के रोगियों के लिये अमृत समान लाभकारी है। लहसुन में पाया जाने वाला सल्फाइड्स रक्‍तचाप कम करने में मदद करता है। लहसून वायरस और बैक्टीरिया से लड़ने के लिये भी ऊर्जा प्रदान करता है। इसके एंटीबैक्टीरियल गुण इन्फे क्शन से लड़ने में मदद करते हैं। यह सर्दी, जुकाम और क फ समस्या का कारगर इलाज है। यह एक चमत्कारिक गुणों वाली औषधी है। सर्दियों में मेथी दाने का नियमित इस्तेमाल अस्थमा, गठिया, एसिडिटी, कफ आदि की कारगर औषधी है। मेथी रक्त ग्लूकाेज और कॉलेस्ट्रॉल क ी मात्रा काे नियंत्रित क रती है। डायबिटीज रोगियों के लिए बहुत ही लाभकारक माना गया है।

मदिरा से परहेज : कुछ लोग सर्दी से बचने के लिये मदिरा का सहारा लेते हैं लेकिन ध्यान रखें कि मदिरा पी कर कभी भी बाहर नहीं घूमना चाहिए। मदिरा से शरीर में गरमाहट आती है परन्तु खुलें में घूमने शरीर का तापमान असामान्य हो सकता है जो किसी बड़े स्ट्रोक का कारण बन सकता है।

नियमति शरीर की सफाई : सर्दियों में लोग नहाने से बचते हैं। पानी से दूरी बनाये रखते हैं। जबकि इस मौसम में गुनगुने पानी से हर दिन स्नान करना चाहिए। इससे हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत रहता है। सार्दियों में शरीर की उपरी त्वचा का तापमान ठण्डा व अन्दरुनी गरम रहता है। सर्दियों में रक्त धमनियां सिकुड़ जाती है। स्नान से त्वचा चेतन होती है तथा बैक्टीरियाें से मुक्ति मिलती है। गर्म पानी में तुलसी के पत्ते, अजवायन, मेथी आदि पका कर स्नान करने से त्वचा खुष्क व मुरझाती नहीं हैं।

खुली हवा से बचें : सर्दियों की हवा में नमी का प्रवाह रहता है। ठण्डी हवा के संपर्क में आने से छाती का जल कफ के रुप में जम जाता है। इससे छाती, गले तथा नाशिका में संक्रमण फैलता है। जिसे जुकाम व नजला कहते हैं। इसके कारण बुखार, निमोनिया तथा ख्ंाासी हो जाती है। इससे बचने के लिसे जरुरी है कि खुली हवा के सम्पर्क में आने से जितना बचा जाये उतना ही अच्छा है।

व्यायाम कर॓, चुस्त रहे : सर्दियों में निष्क्रियता सबसे खतरनाक होती है। इस मौसम में खूब शारीरिक परिश्रम करना चाहिए तथा नियमित व्यायाम करें। इससे शरीर की रोगप्रतिरोधात्मक शक्ति का विकास होता है तथा वातावरण में फैले बैक्टीरिया से लड़ने की शक्ति मिलती है। सर्दियों में अधिकांश लोग घरों के अन्दर दुबक कर बैठे रहते हैं जिससे उनको भोजन पचाने में कठिनाई हो सकती है। यही नहीं इस मौसम में सर्वाधिक गरि‌ष्ट पदार्थाें का सेवन किया जाता है जिसके कारण पेट बाहर आ जाता है। इस मौसम में जितना अधिक गरि‌ष्ट भोजन किया जाता है उसे पचाने के लिये उतना ही शारीरिक परिश्रम करने की जरुरत होती है। इस लिये स्वस्थ रहने के लिये आवश्यक है, खूब परिश्रम कर॓ं।

धूप का भरपूर आनन्द लें : सर्दियों की धूप वैसे भी काफी सुहावनी लगती है। धूप से विटामिन डी भरपूर मात्रा में मिलता है जो त्वचा के लिये सबसे अनुकूल आहार है। धूप से सुस्त पड़ी त्वचा को ऊर्जावान आहार मिलता है। इस लिये सुबह उगते सूर्य की किरणों का भरपूर आनन्द लेना नहीं भूलें। इससे जहां मन को सुकून मिलता है वहीं शरीर को प्राकृतिक ऊर्जा मिलती है। इससे रोगप्रतिरोधात्मक शक्ति  बढ़ती है। सर्दियों में अधिक समय तक अंधेर॓ में नहीं रहना चाहिए। इससे हमारा इम्यून सिस्टम बिगड़ सकता है। सर्दियों में पानी खूब पीना चाहिए। यह शरीर के लिये शोधक के रुप में काम करता है। इससे अंदरुनी सफाई हो जाती है।

Thursday, November 28, 2013

गाय एक चिकित्सा शास्त्र : राजीव दीक्षित जी के प्रवचनों पर आधारित

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गाय एक चिकित्सा शास्त्र : राजीव दीक्षित जी के प्रवचनों पर आधारित



गाय एक चिकित्सा शास्त्र :

गौमाता एक चलती फिरती चिकित्सालय है। गाय के रीढ़ में सूर्य केतु नाड़ी होती है जो सूर्य के गुणों को धारण करती है। सभी नक्षत्रों की यह रिसीवर है। यही कारण है कि गौमूत्र, गोबर, दूध, दही, घी में औषधीय गुण होते हैं।

1. गौमूत्र :- आयुर्वेद में गौमूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौमूत्र को विषनाशक, रसायन, त्रिदोषनाशक माना गया है। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। गौमूत्र से लगभग 108 रोग ठीक होते हैं। गौमूत्र स्वस्थ देशी गाय का ही लेना चाहिए। काली बछिया का हो तो सर्वोत्तम। बूढ़ी, अस्वस्थ व गाभिन गाय का मूत्र नहीं लेना चाहिए। गौमूत्र को कांच या मिट्टी के बर्तन में लेकर साफ सूती कपड़े के आठ तहों से छानकर चौथाई कप खाली पेट पीना चाहिए।

गौमूत्र से ठीक होने वाले कुछ रोगों के नाम – मोटापा, कैंसर, डायबिटीज, कब्ज, गैस, भूख की कमी, वातरोग, कफ, दमा, नेत्ररोग, धातुक्षीणता, स्त्रीरोग, बालरोग आदि।

गौमूत्र से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी बनाई जाती है -

1. गौमूत्र अर्क(सादा) 2. औषधियुक्त गौमूत्र अर्क(विभिन्न रोगों के हिसाब से) 3. गौमूत्र घनबटी 4. गौमूत्रासव 5. नारी संजीवनी 6. बालपाल रस

7. पमेहारी आदि।

2. गोबर :- गोबर विषनाशक है। यदि किसी को विषधारी जीव ने काट दिया है तो पूरे शरीर को गोबर गौमूत्र के घोल में डुबा देना चाहिए।

नकसीर आने पर गोबर सुंघाने से लाभ होता है।

प्रसव को सामान्य व सुखद कराने के समय गोबर गोमूत्र के घोल को छानकर 1 गिलास पिला देना चाहिए(गोबर व गौमूत्र ताजा होना चाहिए)। गोबर के कण्डों को जलाकर कोयला प्राप्त किया जाता है जिसके चूर्ण से मंजन बनता है। यह मंजन दांत के रोगों में लाभकारी है।

3. दूध : – गौदुग्ध को आहार शास्त्रियों ने सम्पूर्ण आहार माना है और पाया है। यदि मनुष्य केवल गाय के दूध का ही सेवन करता रहे तो उसका शरीर व जीवन न केवल सुचारू रूप से चलता रहेगा वरन् वह अन्य लोगों की अपकक्षा सशक्त और रोग प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न हो जाएगा। मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व इसमें होते हैं। गाय के एक पौण्ड दूध से इतनी शक्ति मिलती है, जितनी की 4 अण्डों और 250 ग्राम मांस से भी प्राप्त नहीं होती। देशी गाय के दूध में विटामिल ए-2 होता है जो कि कैंसरनाशक है, जबकि जर्सी(विदेशी) गाय के दूध में विटामिन ए-1 होता है जो कि कैंसरकारक है। भैंस के दूध की तुलना में भी गौदुग्ध अत्यन्त लाभकारी है।

दस्त या आंव हो जाने पर ठंडा गौदुग्ध(1 गिलास) में एक नींबू निचोडक़र तुरन्त पी जावें। चोट लगने आदि के कारण शरीर में कहीं दर्द हो तो गर्म दूध में हल्दी मिलाकर पीवें। टी.बी. के रोगी को गौदुग्ध पर्याप्त मात्रा में दोनों समय पिलाया जाना चाहिए।

4. दही : – गर्भिणी यदि चाँदी के कटोरी में दही जमाकर नित्य प्रात: सेवन करे तो उसका सन्तान स्वस्थ, सुन्दर व बुद्धिवान होता है। गाय का दही भूख बढ़ाने वाला, मलमूत्र का नि:सरण करने वाला एवं रूचिकर है। केवल दही बालों में लगाने से जुएं नष्ट हो जाते हैं। बवासीर में प्रतिदिन छाछ का प्रयोग लाभकारी है। नित्य भोजन में दही का सेवन करने से आयु बढ़ती है।

कुछ प्रयोग :-

* अनिद्रा में गौघृत कुनकुना करके दो-दो बूंद नाक में डालें व दोनों तलवों में घृत से 10 मिनट तक मालिश करें। यही प्रयोग मिर्गी, बाल झडऩा, बाल पकना व सिर दर्द में भी लाभकारी है।

* घाव में गौघृत हल्दी के साथ लगावें। * अधिक समय तक ज्वर रहने से जो कमजोरी आ जाती है उसके लिए गौदुग्ध में 2 चम्मच घी प्रात: सायं सेवन करें। * भूख की कमी होने पर भोजन के पहले घी 1 चम्मच सेंधानमक नींबू रस लेने से भूख बढ़ती है।

गौघृत से विभिन्न प्रकार की औषधियाँ भी बनती है – अष्टमंगल घृत, पञ्चतिक्त घृत, फलघृत, जात्यादि घृत, अर्शोहर मरहम आदि।

गाय एक पर्यावरण शास्त्र :

1. गाय के रम्भाने से वातावरण के कीटाणु नष्ट होते हैं। सात्विक तरंगों का संचार होता है।

2. गौघृत का होम करने से आक्सीजन पैदा होता है।

- वैज्ञानिक शिरोविचा, रूस

3. गंदगी व महामारी फैलने पर गोबर गौमूत्र का छिडक़ाव करने से लाभ होता है।

4. गाय के प्रश्वांस, गोबर गौमूत्र के गंध से वातावरण शुद्ध पवित्र होता है।

5. घटना – टी.बी. का मरीज गौशाला मे केवल गोबर एकत्र करने व वहीं निवास करने पर ठीक हो गया।

6. विश्वव्यापी आण्विक एवं अणुरज के घातक दुष्परिणाम से बचने के लिए रूस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक शिरोविच ने सुझाव दिया है -

* प्रत्येक व्यक्ति को गाय का दूध, दही, छाछ, घी आदि का सेवन करना चाहिए।

* घरों के छत, दीवार व आंगन को गोबर से लीपने पोतने चाहिए।

* खेतों में गाय के गोबर का खाद प्रयोग करना चाहिए।

* वायुमण्डल को घातक विकिरण से बचाने के लिए गाय के शुद्ध घी से हवन करना चाहिए।

7. गाय के गोबर से प्रतिवर्ष 4500 लीटर बायोगैस मिल सकता है। अगर देश के समस्त गौवंश के गोबर का बायोगैस संयंत्र में उपयोग किया जाय तो वर्तमान में ईंधन के रूप में जलाई जा रही 6 करोड़ 80 लाख टन लकउ़ी की बचत की जा सकती है। इससे लगभग 14

करोड़ वृक्ष कटने से बच सकते हैं।

गाय एक अर्थशास्त्र :

सबसे अधिक लाभप्रद, उत्पादन एवं मौलिक व्यवसाय है ‘गौपालन’। यदि एक गाय के दूध, दही, घी, गोबर, गौमूत्र का पूरा-पूरा उपयोग व्यवसायिक तरीके से किया जाए तो उससे प्राप्त आय से एक परिवार का पलन आसानी से हो सकता है।

यदि गौवंश आधारित कृषि को भी व्यवसाय का माध्यम बना लिया जाए तब तो औरों को भी रोजगार दिया जा सकता है।

* गौमूत्र से औषधियाँ एपं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है।

* गोबर से गैस उत्वादन हो तो रसोई में ईंधन का खर्च बचाने के साथ-साथ स्लरी खाद का भी लाभ लिया जा सकता है। गोबर से काला दंत मंजन भी बनाया जाता है।

* घी को हवन हेतु विक्रय करने पर अच्छी कीमत मिल सकती है। घी से विभिन्न औषधियाँ (सिद्ध घृत) बनाकर भी बेची जा सकती है।

* दूध को सीधे बेचने के बजाय उत्पाद बनाकर बेचना ज्यादा लाभकारी है।

गाय एक कृषिशास्त्र :

मित्रों! गौवंश के बिना कृषि असंभव है। यदि आज के तथकथित वैज्ञानिक युग में टै्रक्टर, रासायनिक खाद, कीटनाशक आदि के द्वारा बिना गौवंश के कृषि किया भी जा रहा है, तो उसके भयंकर दुष्परिणाम से आज कोई अनजान नहीं है।

यदि कृषि को, जमीन को, अनाज आदि को बर्बाद होने से बचाना है तो गौवंश आधारित कृषि अर्थात् प्राकृतिक कृषि को पुन: अपनाना अनिवार्य है।

आइए विषय को आगे बढ़ाने के पूर्व एक गीत गाते हैं-

बोलो गौमाता की – जय

गौमाता तो चलती फिरती, अमृत की है खान रे।

गौमाता को पशु समझने, वाला है नादान रे।।

गौमाता के आसपास में, रहते सब भगवान रे।

गौमाता की सेवा कर लो, कर लो कर लो गंगा नहान् रे।।

गौमाता खुशहाल तो बनता, बिगड़ा देश महान रे।

गौमाता बदहाल तो होता, सारा देश बेहाल रे।।

गौ के गोबर में रहता है, लक्ष्मी का वरदान रे।

कौन करेगा पूरा-पूरा, गौ के गुण का गान रे।।

भूसा खाकर जग को देती, माखन सा वरदान रे।

गौमाता को पशु समझने, वाला है नादान रे।।

एक पुरानी कहावत है -

उत्तम खेती, मध्यम बाण, करे चाकरी कुकर निदान।

लेकिन पिछले 25-30 वर्षों में यह उल्टा हो गया है। खेती आज बहुत खर्चीला हो गया है। लागत प्रतिवर्ष बढ़ता ही जा रहा है उसकी तुलना में कृषि उत्पादों की कीमत नहीं बढ़ी -

1. रासायनिक खाद – 1990 में -

युरिया (50 कि.ग्रा.)- 60 से 70 रूपए। डीएपी (1 कि.ग्रा.)- 3 से 4 रू.। सिंगल सुपर फास्फेट (1 कि.ग्रा.)- 2.50 रू.। 2006-07 में युरिया

(50 कि.ग्रा.)- 270 से 400 रू.। डीएपी (1 कि.ग्रा.)- 23 रू.। सिंगल सुपर फास्फेट (1 कि.ग्रा.)- 40 रू.।

2. डीजल की कीमत :- 1990 में 3 रू/लीटर, आज 45 रू.

3. कीटनाशक :- 1990 में करीब 100 रू लीटर था। लेकिन आज 15000 रू लीटर हो गयी है।

अर्थात लगत बहुत बढ़ी है, करीब 700 से 2000त्न तक। इसकी तुलना में कृषि उत्पाद की कीमत बहुत ही कम बढ़ी है

15 वर्ष पूर्व गेहूँ – 7 रू. से 8 रू. था(सरकार के द्वारा तय रेट) आज – 10 रू. है।

15 वर्ष पूर्व धान- 500 रू. क्विंटल था आज 800 रू. क्विटल अर्थात करीब 20त्न की बढ़ातरी हुई है।

* इस प्रकार रासायनिक कृषि घाटे का सौदा साबित हो रहा है। इसके साथ ही रासायनिक खेती से जमीन धीरे-धीरे बंजर हो रही है। पंजाब, उ.प्र. व हरियाणा प्रदेश के खेत अत्यधिक रासायनिक खाद डालने के कारण बर्बाद होते जा रहे हैं। पंजाब के कई गाँव ऐसे हैं जहाँ के खेत अब पूरी तरह से बंजर हो चके हैं।

* बैल के स्थान पर टै्रक्टर से जुताई करने से खेत के केंचुए मर जाते हैं डीजल का धुआं प्रदूषणकारी है।

मानव जाति व पर्यावरण पर कहर ढाती रासायनिक कृषि की कहानी यहीं नहीं समाप्त हसे जाती। इस खेती से प्राप्त अनाज, फल, सब्जियाँ सब जहरीली होती है जिससे ढेरों किस्म की बीमारियाँ बच्चे बूढ़े जवान सभी को लीलती जा रही है। (पृष्ठ 89 पर देखें) इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि रासायनिक और यान्त्रिक कृषि हर दृष्टि से हानिकारक है। कृषि का उद्धार करना है तो गौवंश आधारित प्राकृतिक कृषि को ही अपनाना पड़ेगा। गौपालन के बिना प्राकृतिक कृषि और प्राकृतिक कृषि के बिना गौपालन संभव नहीं है।(प्रशिक्षक इसे विस्तारपूर्वक समझाएं) मिट्टी में कभी वे सभी तत्व मौजूद है जो पेड़ पौधों को चाहिए, लेकिन वह जटिल होते हैं। सूक्ष्म जीव एवं केचए आदि मिट्टी के कठिन घटकों को सरल घटकों में विघटित कर देते हैं, जिसे पेड़ पौधे आसानी से खींच सकते हैं। गाय के एक ग्राम गोबर में 300 से 500 करोड़ तक ऐसे ही सूक्ष्म जीवे होते हैं। ये सूक्ष्म जीव जमीन के केचुओं को सक्रिय करने का भी काम करते हैं। केंचुए मिट्टी में खूब सारे छेद करके उसे कृषि योग्य पोला बना देते हैं। केंचुए मिट्टी को खाकर सरल पोषक तत्वों में बदलते रहते हैं।

‘गोबर जीवामृत’ सूक्ष्म जीवों का महासागर है। इसे बनाकर खेत, बागवानी में हर पन्द्रह दिन में डाला जाए। जिस प्रकार दूध को जमाने के लिए एक चम्मच जामन पर्याप्त है ठीक उसी प्रकार खेत में सूक्ष्म जीवों व

केंचुओं का जमावड़ा करने के लिए एक एकड़ खेत में 200 लीटर जीवामृत जामन का काम करती है।

‘गोबर जीवामृत’ कैसे बनाएं?

10 डिस्मिल के लिए 20 लीटर जीवामृत बनाने का तरीका -

सामग्री :- ताजा गोबर – 1 कि.ग्रा., पुराना गौमूत्र – 1 लीटर, पुराना गुड़ – 250 ग्राम, बेसन – 250 ग्राम, बड़े पेड़ के जड़ की मिट्टी- 1 मु_ी, पानी – 20 लीटर।

विधि :- सबको एक बड़े प्लास्टिक बाल्टी में मिला दें। लकड़ी से घोलें। दो दिन बाद जीवामृत तैयार है। अगले सात दिनों के अन्दर छिडक़ाव कर दें। प्राकृतिक कृषि के लिए मार्गदर्शन हेतु ये किताबें जरूर पढ़ें -1. प्राकृतिक (कुदरती) कृषि का जीरो बजट। 2. जीरो बजट प्राकृतिक कृषि में अनाज की फसल कैसे लें?

मधुमेह (डायबिटीज) : राजीव दीक्षित

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 राजीव दीक्षित Rajiv Dixit
 

जकल मधुमेह की बीमारी आम बीमारी है। डाईबेटिस भारत मे 5 करोड़ 70 लाख लोगोंकों है और 3 करोड़ लोगों को हो जाएगी अगले कुछ सालों मे सरकार ये कह रही है | हर दो मिनट मे एक मौत हो रही है डाईबेटिस से और Complications तो बहुत हो रहे है… किसी की किडनी ख़राब हो रही है, किसीका लीवर ख़राब हो रहा है किसीको ब्रेन हेमारेज हो रहा है, किसीको पैरालाईसीस हो रहा है, किसीको ब्रेन स्ट्रोक आ रहा है, किसीको कार्डियक अरेस्ट हो रहा है, किसी को हार्ट अटैक आ रहा है Complications बहुत है खतरनाक है |

जब किसी व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी होती है। इसका मतलब है वह व्यक्ति दिन भर में जितनी भी मीठी चीजें खाता है (चीनी, मिठाई, शक्कर, गुड़ आदि) वह ठीक प्रकार से नहीं पचती अर्थात उस व्यक्ति का अग्नाशय उचित मात्रा में उन चीजों से इन्सुलिन नहीं बना पाता इसलिये वह चीनी तत्व मूत्र के साथ सीधा निकलता है। इसे पेशाब में शुगर आना भी कहते हैं। जिन लोगों को अधिक चिंता, मोह, लालच, तनाव रहते हैं, उन लोगों को मधुमेह की बीमारी अधिक होती है। मधुमेह रोग में शुरू में तो भूख बहुत लगती है। लेकिन धीरे-धीरे भूख कम हो जाती है। शरीर सुखने लगता है, कब्ज की शिकायत रहने लगती है। अधिक पेशाब आना और पेशाब में चीनी आना शुरू हो जाती है और रेागी का वजन कम होता जाता है। शरीर में कहीं भी जख्म/घाव होने पर वह जल्दी नहीं भरता।

तो ऐसी स्थिति मे हम क्या करें ? राजीव भाई की एक छोटी सी सलाह है के आप इन्सुलिन पर जादा निर्भर न करे क्योंकि यह इन्सुलिन डाईबेटिस से भी जादा खतरनाक है, साइड इफेक्ट्स बहुत है |

इस बीमारी के घरेलू उपचार निम्न लिखित हैं।

आयुर्वेद की एक दावा है जो आप घर मे भी बना सकते है -

1. 100 ग्राम मेथी का दाना

2. 100 ग्राम तेजपत्ता

3. 150 ग्राम जामुन की बीज

4. 250 ग्राम बेल के पत्ते

इन सबको धुप मे सुखाके पत्थर मे पिस कर पाउडर बना कर आपस मे मिला ले, यही औषधि है |

औषधि लेने की पद्धति : सुबह नास्ता करने से एक घंटे पहले एक चम्मच गरम पानी के साथ लेले फिर शाम को खाना खाने से एक घंटे पहले लेले | तो सुबह शाम एक एक चम्मच पाउडर खाना खाने से पहले गरम पानी के साथ आपको लेना है | देड दो महीने अगर आप ये दावा ले लिया और साथ मे प्राणायाम कर लिया तो आपकी डाईबेटिस बिलकुल ठीक हो जाएगी |

ये औषधि बनाने मे 20 से 25 रूपया खर्च आएगा और ये औषधि तिन महिना तक चलेगी और उतने दिनों मे आपकी सुगर ठीक हो जाएगी |

सावधानी :

1. सुगर के रोगी ऐसी चीजे जादा खाए जिसमे फाइबर हो रेशे जादा हो, High Fiber Low Fat Diet घी तेल वाली डायेट कम हो और फाइबर वाली जादा हो रेशेदार चीजे जादा खाए| सब्जिया मे बहुत रेशे है वो खाए, डाल जो छिलके वाली हो वो खाए, मोटा अनाज जादा खाए, फल ऐसी खाए जिनमे रेशा बहुत है |

2. चीनी कभी ना खाए, डाईबेटिस की बीमारी को ठीक होने मे चीनी सबसे बड़ी रुकावट है | लेकिन आप गुड़ खा सकते है |

3. दूध और दूध से बनी कोई भी चीज नही खाना |

4. प्रेशर कुकर और अलुमिनम के बर्तन मे खाना न बनाए |

5. रात का खाना सूर्यास्त के पूर्व करना होगा |

जो डाईबेटिस आनुवंशिक होतें है वो कभी पूरी ठीक नही होता सिर्फ कण्ट्रोल होता है उनको ये दावा पूरी जिन्दगी खानी पड़ेगी पर जिनको आनुवंशिक नही है उनका पूरा ठीक होता है |


मधुमेह पर ‘आयुर्वेद’ का मत


आयुर्वेद चिकित्सा विज्ञान ने त्रिदोष के कारण मधुमेह (शुगर) की उत्पत्ति मानी है। अर्थात कफ, पित्त तथा वायु के शरीर में संतुलन बिगड़ने से यह रोग उत्पन्न होता है। कई बार पेट की ख़राबी अपच आदि से रोग की स्थिति ज़्यादा ख़राब हो जाती है। वैसे प्रमेह (धातु रोग) 20 प्रकार के माने गए हैं, जिनमें से एक मधुमेह है। इसमें शिलाजीत, कारबेल्लक, सप्तचक्रा, बिम्बी, विजयसार की लकड़ी, मेथी दाना, गुड़मार बूटी आदि औषधियों का प्रयोग किया जाता है।
शिलाजीत  एक प्रकार का पत्थर से निकला हुआ पदार्थ है जो कि अत्यंत शक्तिशाली होता है। यह तासीर से गर्म एवं ख़ुश्क़ है। इसे आयुर्वेद में रसायन गुण वाली यानी टॉनिक का नाम दिया गया है। यह सभी प्रकार के प्रमेहों में लाभ करती है जिसमें से मधुमेह भी एक है। आयुर्वेद मतानुसार शिलाजीत मधुमेह से होने वाली शारीरिक क्षति से बचाती है। अर्थात् मधुमेह के कारण जो शरीर के अंगों को नुक़सान होता है उस क्षति की पूर्ति करती रहती है जिससे प्रमहों या मधुमेह से नुक़सान नहीं हो पाता। परन्तु यह औषधि पित्त प्रकृति के मनुष्य को ज़्यादा नहीं लेनी चाहिए। यह कफ  एवं वात प्रकृति के लोगों को अधिक लाभ देती है।
कारबेल्लक जिसको हिन्दी में करेला और अंग्रेजी में बिटर गॉर्ड कहते हैं, मधुमेह रोग में अच्छा लाभ करता है। इसके फल में ऐसकोर्बिक ऐसिड होता है। इसके फलों एवं पत्तों में मोसोर्डिकिन नामक क्षार पाया जाता है। इसके पौधे में ग्लुकोसाईड, एक राल तथा सुगंधित तेल पाया जाता है। यह मधुमेह में उत्तम कार्य करता है। इससे रक्तगत शर्करा कम होती है। यकृत तथा आमाशय की क्रिया सुधरती है तथा अग्नाश्य (पैनक्रियाज) को उत्तेजित कर इन्सुलिन के स्त्राव को  बढ़ाता है। करेले के जूस की मात्रा 10-20 मिली लीटर लेने से लाभ होता है तथा करेले के अतियोग से उपद्रव होने पर चावल और घी खिलाना चाहिए।
सप्तक्रिया जिसको अंग्रेजी में हिप्पोक्रेटिएसी Hippocrateacei कहते हैं, इसके क्वाथ (Decoction) की मात्रा 50-100 मिली लीटर ली जाती है। इसका प्रयोग मधुमेह में किया जाता है। इससे मूत्र कम आता है तथा रक्त में शर्करा की मात्रा भी कम हो जाती है। इसके अतिरिक्त रोगी के स्वास्थ्य को सुधारती है। ऐसा ‘द्रव्य गुण विज्ञान’ नामक पुस्तक में लिखा है। बिम्बी नामक औषधि भी मधुमेह में लाभ करती है। इसके पत्रों या जड़ का स्वरस दिया जाता है जिसकी मात्रा 10-20 मिली लीटर है। विजयसार की लकड़ी को बर्तन में रात को पानी में रखकर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह में सतवर लाभ होता है।
मेथी दानों को रात्रि में पानी में भिगोकर सुबह खाने एवं उस पानी को पीना मधुमेह रोगी के लिए हितकारी है।
गुड़मार बूटी जिसे मेषशृंगी भी कहते हैं, मधुमेह में अच्छा कार्य करती है। यह लीवर एवं आमाशय ग्रंथियों के लिए उत्तेजक है। यह पैनक्रियाज़ ग्रंथियों की कोशिकाओं को उत्तेजित कर इन्सुलिन की मात्रा बढ़ाती है। यह मूत्रल होने के कारण रक्त की अम्लता को ठीक करती है।
‘ब्राह्मी’ जल के किनारे छत्तों के रूप में पैदा होने वाली अत्यन्त गुणकारी बूटी है। यह बूटी आमतौर पर सारे भारतवर्ष में पाई जाती है लेकिन हरिद्वार से लेकर बद्रीनारायण के मार्ग में पाई जाने वाली ब्राह्मी विशेष गुणकारी मानी गई है। अंग्रेजी में इसे इण्डियन पेनीवर्ट के नाम से जाना जाता है। इस वनस्पति की डालियाँ या शाखाएँ ज़मीन पर ही फैलती हैं। इन शाखाओं के प्रत्येक  गठान में से जड़ निकलकर ज़मीन में घुस जाती है। इसमें वसन्त ऋतु से लेकर ग्रीष्म ऋतु तक फूल और फल लगते हैं। इसके फूल सफेद और नीली झाईं लिए होते हैं। इसका स्वाद कड़वा होता है। इसी बूटी से मिलती-जुलती एक अन्य बूटी मंडूकपर्णी होती है परन्तु ब्राह्मी एवं मंडूकपर्णी में भेद यह है कि मंडूकपर्णी के पत्ते ब्राह्मी के पत्तों की अपेक्षा गोल होते हैं।

ब्राह्मी के गुण-दोष एवं प्रभाव

आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘भाव प्रकाश निघन्टू’ के अनुसार ब्राह्मी शीतल, हल्की, सारक, मेधाकारक (बुध्दि वर्धक) कसैली, कड़वी, आयुवर्धक रसायन, स्वर एवं कंठ को उत्तम करने वाली, स्मरण शक्ति बढ़ाने वाली, कुष्ठ, पांडु, प्रमेह, रक्त विकार, खाँसी, विष, सूजन और ज्वर को हरने वाली होती है।
निघंटू रत्नाकर के मतानुसार ब्राह्मी शीतल, कसैली, कड़वी, बुध्दिदायक, हृदय को हितकारी, स्मरणशक्ति वर्धक, रसायन, विष, कोढ़, पांडु रोग, सूजन प्लीहा, पित्त अरुचि, श्वास, शोष, कफ  एवं वात को दूर करती है।
ब्राह्मी के रासायनिक विश्लेषण करने पर इसमें से ब्रहीन नामक एक विषैला उपक्षार प्राप्त किया जाता है जो कि कुचले में पाये जाने वाले स्ट्रिकनाईन से मिलता-जुलता है। इसकी थोड़ी सी ही मात्रा शरीर में रक्त भार बड़ा देती है। हृदय की पेशियों को उत्तेजित करती है। श्वास क्रिया प्रणाली, गर्भाशय एवं छोटी आँत को भी इसकी अत्यंत थोड़ी मात्रा उत्तेजित करती है। सन् 1931 में डॉ.के.सी.बोस एवं एन.के.बोस ने इसका रासायनिक  विश्लेषण किया था।
ब्राह्मी विशेष रूप से मस्तिष्क संबंधी रोगों में विशेष रूप से फायदेमंद पाई  गई है। ब्राह्मी की मुख्य क्रिया मस्तिष्क एवं मज्जा तंतुओं पर होती है। यह मस्तिष्क को शान्ति और मज्जा को ताक़त देता है। इसलिए ब्राह्मी का प्रयोग मस्तिष्क एवं मज्जा तंतुओं के रोगों में करते हैं। अधिक  मानसिक परिश्रम  करने वाले लोगों को यह बूटी विशेष लाभकारी पाई गई है। मस्तिष्क की थकान एवं उन्माद में यह विशेष लाभ दर्शाती है। नवीन रोगों में इसका प्रयोग कम किया जाता है परन्तु पुराने उन्माद एवं अपस्मार में मस्तिष्क को पुष्ट करने में इसका कार्य बेहतर है।
ब्राह्मी जहाँ मस्तिष्क संबंधित रोगों को ठीक करती है वहीं कुछ कब्ज़ियत पैदा करने का भी दोष रखती है इसलिए इसका प्रयोग करते समय मृदु बिरेचक (हल्की दस्तावर) औषधियों का प्रयोग भी करते रहना चाहिए। इसके पत्तों के रस को पेट्रोल में मिलाकर मालिस करने से (संधिवात) दोड़ों के दर्द में लाभ होता है। इसका एक चम्मच रस बच्चों को जुक़ाम, ब्रांकाईटिश, वमन एवं दस्त में लाभ करता है। इसमें एक प्रकार का उड़नशील तेल होता है इसलिए इसको आँच या धूप में नहीं सुखाना चाहिए।
पांडेचेरी में यह औषधि कामोद्दीपक मानी जाती है। श्रीलंका में अग्नि विसर्प और श्लीपद रोगों में इसकी सेंक करते हैं तथा डालियों एवं पत्तों का रस सर्पदंश के उपचार में पिलाते हैं। आयुर्वेद ग्रंथ ‘वनौषधि चंद्रोदय’ का मत है कि ब्राह्मी मुख्य रूप से मस्तिष्क संबंधी रोगों, उन्माद, हिस्टीरिया एवं मिर्गी में काम करती है।
ब्राह्मी घृत आयुर्वेद की एक दवा है जो सभी प्रमुख दवा कम्पनियों की मिलती है। रस रत्नाकर नामक आयुर्वेदिक ग्रंथ में लिखा है कि इस घृत को प्रतिदिन एक से दो तोला दूध में डालकर पीने से मनुष्य का कंठ सुधरता है और स्मरणशक्ति प्रबल हो जाती है। कठिन-से-कठिन शास्त्र भी एक बार पढ़ने से  याद  हो जाते हैं। सभी प्रकार के कुष्ठ रोगों को ठीक करके मनुष्य को निरोग करती है। हर प्रकार की बवासीर, पाँच प्रकार के वायु गोले तथा हर प्रकार की खाँसी इसके प्रयोग से ठीक हो जाती है। बांझ स्त्रियाँ इसके सेवन से गर्भधारण के योग्य हो जाती हैं।

सारस्वतारिष्ट: इसका अन्य उपयोग सारस्वतारिष्ट नामक दवा में किया जाता है। यह दवा बाज़ार में ख़ूब मिलती है। भैषग यरत्नावली नामक आयुर्वेदिक ग्रंथ में लिखा है कि सारस्वतारिष्ट सबसे पहले भगवान धनवंतरि ने अपने मंदबुध्दि शिष्यों कि लिए बनाया था। इसके सुबह, दोपहर एवं शाम तीनों वक़्त भोजन के आधा घण्टे बाद एक- एक तोला बराबर पानी मिलाकर पीने से मनुष्य की स्मरणशक्ति बहुत ज़्यादा हो जाती है तथा दीर्घायु होता है। इसको नित्य सेवन करने वाले का बल, वीर्य, स्मरणशक्ति, हृदय की गति एवं  कीर्ति की वृध्दि करता है। इसके सेवन से ओज नामक दिव्य तत्व की वृध्दि होती है। मनुष्य के वीर्य दोष एवं स्त्रियों के गतु दोष भी ठीक हो जाते हैं। अधिक पढ़ने से, गाने से या अधिक भाषण देने से जिनका बल एवं स्मरणशक्ति कमज़ोर हो गई हो तो इसका उपयोग अच्छा लाभ देता है। उन्माद, अपस्मार इत्यादि रोग इसके सेवन से नष्ट हो जाते हैं।

ब्राह्मी रसायन : छाँह में सुखाई हुई ब्राह्मी  का चूर्ण 5 तोला, मुलहठी का चूर्ण 5 तोला, शंखाहुली का चूर्ण 5 तोला, गिलोप का चूर्ण 5 तोला तथा स्वर्ण भस्म आधा माशा लेकर इन सबको चूर्ण बनाकर 1 से 3 ग्राम तक असमान भाग घी एवं शहद (घी एक भाग, शहद दो भाग) के साथ खाने से मनुष्य की स्मरणशक्ति, कुष्ठ एवं शरीर के अन्य रोगों का नाश हो जाता है तथा मनुष्य निरोगी होकर सकल सिध्दि प्राप्त कर सकता है।

कैरिअर : आयुर्वेद में स्नातक कर रहे छात्रों का भविष्य उज्ज्वल







करियर: आयुर्वेद में स्नातक कर रहे छात्रों का भविष्य उज्ज्वल


अंग्रेजी चिकित्सा के दौर में इलाज के लिए प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धतियां भी अपनी जगह कायम हैं. प्राचीन चिकित्सा पद्धतियों में ही सबसे जाना-पहचाना नाम है आयुर्वेद. इस क्षेत्र में रोजगार के नये आयाम है.
आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का विज्ञान. इसने बीमारियों से लड़ने के लिए कई चिकित्सीय विधियां विकसित की हैं. साथ ही, बचाव और उपचार दोनों पहलुओं को भी जाना है.

देश में इस आयुर्वेदिक उपचार को काफी महत्व दिया जा रहा है. आयुर्वेदिक दवाई निर्माता कंपनियों की संख्या में इजाफा और विदेशों में भी इसका प्रचलन इस क्षेत्र में रोजगार के नये आयाम खोल रहा है.

आयुर्वेद को लेकर एक प्रमुख बात यह है कि विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए अधिक से अधिक पंचकर्म केंद्र बनाए जा रहे हैं. यही नहीं, देश में प्रत्येक नागरिक अस्पताल में कम से कम एक आयुर्वेदिक चिकित्सक का होना अनिवार्य कर दिया गया है.

ऐसे में आयुर्वेद में स्नातक कर रहे छात्रों का भविष्य उज्ज्वल है. आईएएसआई यूनिवर्सिटी के उपकुलपति मिलाप दुगर कहते हैं आयुर्वेद विज्ञान एक अद्वितीय चिकित्सा पद्धति है जिससे न केवल रोग ठीक होता है बल्कि व्यक्ति का उपचार भी होता है
.

यह उपचार पंचकर्म द्वारा किया जाता है. इस उपचार पद्धति में बढ़ती रुचि ने आयुर्वेदिक डॉक्टरों की मांग बढ़ा दी है

Wednesday, November 27, 2013

Poojya Acharya Bal Krishan Ji Maharaj

गाजर


गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।

सर्दियों के मौसम में डाइट में बहुत बदलाव आ जाता है। इस सीजन में हमें विटामिन व न्यूट्रिशंस से भरपूर कई चीजें खाने को मिलती हैं और गाजर भी इन्हीं में से एक है। इसमें विटामिन और मिनरल्स बहुत मात्रा में मिलते हैं। डाइटीशन एकता टंडन के मुताबिक, गाजर बेहद फायदेमंद होता है। इसमें विटामिन ए, विटामिन बी, सी, कैल्शियम और पैक्टीन फाइबर होता है, जो कॉलेस्ट्रोल का लेवल बढ़ने नहीं देता।

आप गाजर इस तरह ले सकते हैं :

रोजाना गाजर का जूस लेने से आपको सर्दी व जुकाम नहीं होगा। गाजर का जूस बॉडी की इम्यूनिटी बढ़ाने का काम करता है और इससे आप जर्म्स व इंफेक्शन वगैरह होने से बचे रहते हैं।

गाजर में विटामिन ए और सी होता है। इसके अलावा, इसमें प्रचुर मात्रा में मिनरल व सिलिकॉन होते हैं, जिससे आपकी आंखों की रोशनी अच्छी रहती है।

गाजर का जूस स्किन को साफ रखता है और चेहरे पर चमक भी आती है।

अगर आप अपने बच्चे को दूध पिलाती हैं, तो गाजर दूध की मात्रा बढ़ाने में सहायक है।

आपको गाजर से कई विटामिन व मिनरल्स मिलते हैं। इसमें एंटीऑक्सिडेंट बीटा कैरोटिन, अल्फा कैरोटिन, कैल्शियम, विटामिन ए, बी1, बी2, सी और ई भी है। एंटीऑक्सिडेंट से स्किन में चमक आती है।

जिन लोगों को हड्डियों वगैरह की तकलीफ है, उन्हें डाइट में गाजर जरूर लेनी चाहिए। इससे आपकी बॉडी में कैल्शियम की मात्रा बढ़ेगी और आपकी बॉडी इस तरह मिलने वाले कैल्शियम को जल्दी ऑब्जर्ब करेगी। अगर आप कॉपर, आयरन, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और सल्फर वगैरह की टेबलेट लेते हैं, तो उससे बेहतर है कि आप गाजर खाएं।

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गाजर के फायदे :

इससे इम्यूनिटी सिस्टम मजबूत होता है।

स्किन को सन डैमेज से राहत मिलती है।

दिल से जुड़ी बीमारियां कम होती हैं।

ब्लड प्रेशर नॉर्मल रहता है।

मसल्स स्ट्रॉन्ग बनती हैं और स्किन हेल्दी होती है।

अनीमिया से बचाव रहता है।

एक्ने कम होते हैं।

आंखों की बीमारियों कम होती ह

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सिरके का आयुर्वेद में प्रयोग ---

- सिरका कई प्रकार का होता है।अंगूर, सेब, संतरे, अनन्नास, जामुन तथा अन्य फलों के रस, जिनमें शर्करा पर्याप्त है, सिरका बनाने के लिए बहुत उपयुक्त हैं क्योंकि उनमें जीवाणुओं के लिए पोषण पदार्थ पर्याप्त मात्रा में होते हैं।


- आयुर्वेद में सिरके का प्रयोग औषधि के रूप में किया जाता है। आप अपने बालों को सुंदर बनाने के लिए भी सिरके का प्रयोग कर सकते हैं। सिरका बालों के लिए अच्छा है । डेंड्रफ, जूं जैसी समस्याओं से बचने के लिए सिरके का प्रयोग लाभकारी है। बालों की अच्छी तरह से सफाई और बालों को स्व्स्थ रखने में सिरके का इस्तेमाल किया जाता है। बालों की कंडीशनिंग के लिए भी सिरके का इस्तेमाल किया जा सकता है।

- बालों में होने वाले फुंसी, फंगस और इसी तरह की अन्य समस्याओं को दूर करने और बैक्टीरिया इत्यादि को नष्ट करने में भी सिरके का प्रयोग किया जाता है।

- बालों की चमक बरकरार रखने के लिए और बालों को मुलायम और सुंदर बनाने के लिए सिरके से किफायती कुछ भी नहीं।

- सिरके से बालों को सीधा भी किया जा सकता है। यदि रूखे और घुंघराले बालों को सीधा करना है तो सिरके का प्रयोग करना चाहिए। ऐसे में आपको चाहिए कि आप सेब के सिरके से बालों को धोएं और इससे जल्द ही आप बाल सीधे कर पाएंगे।

- भोजन के साथ सिरका खाने से रक्त पतला होता है।

- सिरका, चर्बी कम करने और शरीर से विषैले पदार्थ निकालने की प्रक्रिया में सहायक होता है तथा इससे रक्त से वसा और हानिकारक कोलिस्ट्रोल कम होता है।

- सिरका बुद्धि में तीव्रता का कारण बनता है और ह्रदय के लिए लाभदायक होता है।

- सिरके में मौजूद सेट्रिक एसिड आहार में मौजूद कैल्शियम को शरीर का अंश बनाता है और शरीर की भीतरी क्रियाओं के लिए अत्याधिक लाभदायक होता है।

- सिरका, पाचनक्रिया के लिए हानिकारिक बैक्र्टिरिया का नाश करता है। जिन लोगों को पाचनतंत्र की समस्या और क़ब्ज़ तथा दस्त अथवा पेट दर्द में ग्रस्त हैं वह सिरका की सहायता से इन समस्याओं से छुटकारा पा सकते हैं।

- सिरके का एक अन्य लाभ यह है कि वह अमाशय की एसिड के स्राव को संतुलित करता है ।

- सिरका दांतों की गंदगी दूर करने और मसूड़े की सूजन में लाभदायक है।

- डाक्टर, कमज़ोर स्नायुतंत्र, गठिया और अल्सर के रोगियों के लिए सिरके को हानिकारक बताते हैं।

- जामुन का सिरका पेट सम्बंधी रोगों के लिए लाभकारक है। जामुन के सिरके से भूख बढ़ती है, पेट की वायु निकलती है , कब्ज दूर होती है व मूत्र साफ होता है।काले पके हुए जामुन साफ धो कर पोछ कर मिटटी के बर्तन में नामक मिलाकर साफ कपडे से बांध कर धुप में रख दे । एक सप्ताह धुप में रखने के पश्चात् इसको साफ कपडे से छान कर रस को कांच के बोतल में भर कर रख दे यह सिरका तैयार है । मुली प्याज गाजर शलजम मिर्च आदि के टुकडे भी उसी सिरके में डालकर इसका उपयोग सलाद पर आसानी से किया जा सकता है ।

- किसी ने धतूरा खा लिया हो, तो उसे अंगूर का सिरका दूध में मिलाकर पिलाने से काफी लाभ होता है।

- एक प्याले में सेब का सिरका, एक कप शहद और छिले हुए लहसुन की आठ गाँठे मिलाओ। इन सबको तेज चलने वाली मिक्सी में डाल कर एक मिनट के लिए चला दो और घोल तैयार करो। इस मिश्रण को एक काँच की बोतल में डाल कर पाँच दिन के लिए फ्रिज में बन्द करके रखो। आम खुराक -दो चम्मच पानी या अंगूर या फलों के रस में डाल कर नाश्ते से पहले लो। इस इलाज से बंद नाड़ियों, जोड़ों का दर्द, उच्च रक्तचाप ( हाई ब्लड प्रैशर), कैंसर की कुछ किस्मों, कोलेस्टरोल की अधिक मात्रा, सर्दी ज़ुकाम, बदहज़मी, सिर दर्द, दिल के रोग, रक्त प्रवाह की समस्या, बवासीर, बांझपन, नपुसंकता, दांत दर्द, मोटापा, अल्सर और बहुत सारी बीमारियाँ ठीक करने में सहायता मिलती है।

- एसीडिटी से निजात पाने के लिए एक ग्लास पानी में दो चम्मच सेब का सिरका तथा दो चम्मच शहद मिलाकर खाने से पहले सेवन करें।

- हृदय रोग, कैलोस्ट्रोल बढ़ने और खून के थक्के होने की शिकायत है, उनके लिए अनुभूत औषधि जो बरसों पहले एक वृद्ध साधू द्वारा बताई गयी है.अदरक का रस एक कप, लहसून का रस एक कप, नीम्बू का रस एक कप, सेब का सिरका एक कप लेकर, उसको मध्यम आंच पर गर्म करे. जब तीन कप रह जाएँ, तो उसको सामान्य तापमान तक ठंडा कर लें . फिर उसमें तीन कप शहद मिला कर, किसी भी बोतल आदि में रख लें. रोज़ प्रात: खाली पेट, दो चम्मच औषधि को सामान मात्रा में जल मिलाकर, सेवन करें.नाश्ता लगभग आधे घंटे बाद करें.

पेठे के गुण


* पेठा या कुम्हडा व्रत में भी लिया जा सकता है .
* आयुर्वेद ग्रंथों में पेठे को बहुत उपयोगी माना गया है। यह पुष्टिकारक, वीर्यवर्ध्दक, भारी, रक्तदोष तथा वात-पित्त को नष्ट करने वाला है।
* कच्चा पेठा पित्त को समाप्त करता है लेकिन जो पेठा अधिक कच्चा भी न हो और अधिक पका भी न हो, वह कफ पैदा करता है किन्तु पका हुआ पेठा बहुत ठंडा, ग्राही, स्वाद खारी, अग्नि बढ़ाने वाला, हल्का, मूत्राशय को शुध्द करने वाला तथा शरीर के सारे दोष दूर करता है।
* यह मानसिक रोगों में जैसे मिरगी, पागलपन आदि में तो बहुत लाभ पहुंचाता है। मानसिक कमजोरी-मानसिक विकारों में विशेषकर याद्दाश्त की कमजोरी में पेठा बहुत उपयोगी रहता है। ऐसे रोगी को 10-20 ग्राम गूदा खाना चाहिए अथवा पेठे का रस पीना चाहिए।
* शरीर में जलन-पेठे के गूदे तथा पत्तों की लुगदी बनाकर लेप करें। साथ-साथ बीजों को पीसकर ठंडाई बनाकर प्रयोग करें। इससे बहुत लाभ होगा।
* नकसीर फूटना- पेठे का रस पीएं या गूदा खाएं। सिर पर इसके बीजों का तेल लगाएं। बहुत लाभ होगा।
* दमा रोग – दमे के रोगियों को पेठा अवश्य खिलाएं। इससे फेफड़ों को शांति मिलती है।
खांसी तथा बुखार- पेठा खाने से खांसी तथा बुखार रोग भी ठीक होते हैं।
* पेशाब के रोग- पेठे का गूदा तथा बीज मूत्र विकारों में बहुत उपयोगी है। यदि मूत्र रूक-रूककर आता हो अथवा पथरी बन गई हो तो पेठा तथा उसके बीज दोनों का प्रयोग करें। लाभ होगा।
* वीर्य का कमी- इस रोग में पेठे का सेवन अति उपयोगी है।
* कब्ज तथा बवासीर-पेठे के सेवन से कब्ज दूर होती है। इसी कारण बवासीर के रोगियों के लिए यह बहुत लाभकारी है। इससे बवासीर में रक्त निकलना भी बंद हो जाता है।
भूख न लगना- जिन लोगों की आंतों में सूजन आ गई है, भूख नहीं लगती, वे सुबह दो कप पेठे का रस पीएं। भूख लगने लगेगी और आंतों की सूजन भी ठीक हो जाएगी।
* खाली पेट पेठा खाने से शारीर में लचीलापन और स्फूर्ति बनी रहती है .

गोंद के औषधीय गुण




किसी पेड़ के तने को चीरा लगाने पर उसमे से जो स्त्राव निकलता है वह सूखने पर भूरा और कडा हो जाता है उसे गोंद कहते है .यह शीतल और पौष्टिक होता है . उसमे उस पेड़ के ही औषधीय गुण भी होते है . आयुर्वेदिक दवाइयों में गोली या वटी बनाने के लिए भी पावडर की बाइंडिंग के लिए गोंद का इस्तेमाल होता है . - कीकर या बबूल का गोंद पौष्टिक होता है . - नीम का गोंद रक्त की गति बढ़ाने वाला, स्फूर्तिदायक पदार्थ है।इसे ईस्ट इंडिया गम भी कहते है . इसमें भी नीम के औषधीय गुण होते है - पलाश के गोंद से हड्डियां मज़बूत होती है .पलाश का 1 से 3 ग्राम गोंद मिश्रीयुक्त दूध अथवा आँवले के रस के साथ लेने से बल एवं वीर्य की वृद्धि होती है तथा अस्थियाँ मजबूत बनती हैं और शरीर पुष्ट होता है।यह गोंद गर्म पानी में घोलकर पीने से दस्त व संग्रहणी में आराम मिलता है। - आम की गोंद स्तंभक एवं रक्त प्रसादक है। इस गोंद को गरम करके फोड़ों पर लगाने से पीब पककर बह जाती है और आसानी से भर जाता है। आम की गोंद को नीबू के रस में मिलाकर चर्म रोग पर लेप किया जाता है। - सेमल का गोंद मोचरस कहलाता है, यह पित्त का शमन करता है।अतिसार में मोचरस चूर्ण एक से तीन ग्राम को दही के साथ प्रयोग करते हैं। श्वेतप्रदर में इसका चूर्ण समान भाग चीनी मिलाकर प्रयोग करना लाभकारी होता है। दंत मंजन में मोचरस का प्रयोग किया जाता है। - बारिश के मौसम के बाद कबीट के पेड़ से गोंद निकलती है जो गुणवत्ता में बबूल की गोंद के समकक्ष होती है। - हिंग भी एक गोंद है जो फेरूला कुल (अम्बेलीफेरी, दूसरा नाम एपिएसी) के तीन पौधों की जड़ों से निकलने वाला यह सुगंधित गोंद रेज़िननुमा होता है । फेरूला कुल में ही गाजर भी आती है । हींग दो किस्म की होती है - एक पानी में घुलनशील होती है जबकि दूसरी तेल में । किसान पौधे के आसपास की मिट्टी हटाकर उसकी मोटी गाजरनुमा जड़ के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगा देते हैं । इस चीरे लगे स्थान से अगले करीब तीन महीनों तक एक दूधिया रेज़िन निकलता रहता है । इस अवधि में लगभग एक किलोग्राम रेज़िन निकलता है । हवा के संपर्क में आकर यह सख्त हो जाता है कत्थई पड़ने लगता है ।यदि सिंचाई की नाली में हींग की एक थैली रख दें, तो खेतों में सब्ज़ियों की वृद्धि अच्छी होती है और वे संक्रमण मुक्त रहती है । पानी में हींग मिलाने से इल्लियों का सफाया हो जाता है और इससे पौधों की वृद्धि बढ़िया होती - गुग्गुल एक बहुवर्षी झाड़ीनुमा वृक्ष है जिसके तने व शाखाओं से गोंद निकलता है, जो सगंध, गाढ़ा तथा अनेक वर्ण वाला होता है. यह जोड़ों के दर्द के निवारण और धुप अगरबत्ती आदि में इस्तेमाल होता है . - प्रपोलीश- यह पौधों द्धारा श्रावित गोंद है जो मधुमक्खियॉं पौधों से इकट्ठा करती है इसका उपयोग डेन्डानसैम्बू बनाने में तथा पराबैंगनी किरणों से बचने के रूप में किया जाता है। - ग्वार फली के बीज में ग्लैक्टोमेनन नामक गोंद होता है .ग्वार से प्राप्त गम का उपयोग दूध से बने पदार्थों जैसे आइसक्रीम , पनीर आदि में किया जाता है। इसके साथ ही अन्य कई व्यंजनों में भी इसका प्रयोग किया जाता है.ग्वार के बीजों से बनाया जाने वाला पेस्ट भोजन, औषधीय उपयोग के साथ ही अनेक उद्योगों में भी काम आता है। - इसके अलावा सहजन , बेर , पीपल , अर्जुन आदि पेड़ों के गोंद में उसके औषधीय गुण मौजूद होते है .

Saturday, November 23, 2013

चिरौंजी या चारोली

- चिरौंजी या चारोली पयार या पियाल, प्रियाल नामक वृक्ष के फलों के बीज की गिरी है जो खाने में बहुत स्वादिष्ट होती है।
- इसका प्रयोग भारतीय पकवानों, मिठाइयों और खीर व सेंवई इत्यादि में किया जाता है।
- चारोली वर्षभर उपयोग में आने वाला पदार्थ है जिसे संवर्द्धक और पौष्टिक जानकर सूखे मेवों में महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।
- चारोली का वृक्ष अधिकतर सूखे पर्वतीय प्रदेशों में पाया जाता है। दक्षिण भारत, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, मध्यप्रदेश, छोटा नागपुर आदि स्थानों पर यह वृक्ष विशेष रूप से पैदा होता है।
- इसके पत्तों से पत्तल भी बनाई जाती है।
- इस वृक्ष के फल से निकाली गई गुठली को मींगी कहते हैं।
- चारोली बादाम की प्रतिनिधि मानी जाती है। जहाँ बादाम न मिल सकें वहाँ चारोली का प्रयोग किया जा सकता है।
- चारोली स्वाद में मधुर, स्निग्ध, भारी, शीतल एवं हृद्य (हृदय को रुचने वाली) है। देह का रंग सुधारने वाली, बलवर्धक, वायु-दर्दनाशक एवं शिरःशूल को मिटाने वाली है।
- यह मधुर बल वीर्यवर्द्धक, हृदय के लिए उत्तम, स्निग्ध, विष्टंभी, वात पित्त शामक तथा आमवर्द्धक होती है।
- इसका सेवन रूग्णावस्था और शारीरिक दुर्बलता में किया जाता है।
- चारोली का पका हुआ फल भारी होने के साथ-साथ मधुर, स्निग्ध, शीतवीर्य तथा दस्तावार और वात पित्त, जलन, प्यास और ज्वर का शमन करने वाला होता है।
- चिरौंजी कफ को दस्त द्वारा बाहर निकाल देता है।
- शहद चिरौंजी के दोषों को दूर कर इसके गुणों को सुरक्षित रखता है।
- इस वृक्ष के फल की गुठली से निकली मींगी और छाल दोनों उपयोगी होती है।
- चिरौंजी का उपयोग अधिकतर मिठाई में जैसे हलवा, लड्डू, खीर, पाक आदि में सूखे मेवों के रूप में किया जाता है।
- सौंदर्य प्रसाधनों में भी इसका उपयोग किया जाता है।
- मुँहासे- नारंगी और चारोली के छिलकों को दूध के साथ पीस कर इसका लेप तैयार कर लें और चेहरे पर लगाए। इसे अच्छी तरह सूखने दें और फिर खूब मसल कर चेहरे को धो लें। इससे चेहरे के मुँहासे गायब हो जाएँगे। अगर एक हफ्ते तक प्रयोग के बाद भी असर न दिखाई दे तो लाभ होने तक इसका प्रयोग जारी रखें।
- गीली खुजली - गीली खुजली में 10 ग्राम सुहागा पिसा हुआ, 100 ग्राम चारोली, 10 ग्राम गुलाब जल इन तीनों को साथ में पीसकर इसका पतला लेप तैयार करें और खुजली वाले सभी स्थानों पर लगाते रहें। ऐसा करीबन 4-5 दिन करें। इससे खुजली में काफी आराम मिलेगा।
- चेहरे पर लेप- चारोली को गुलाब जल के साथ सिलबट्टे पर महीन पीस कर लेप तैयार कर चेहरे पर लगाएँ। लेप जब सूखने लगे तब उसे अच्छी तरह मसलें और बाद में चेहरा धो लें। इससे चेहरा चिकना, सुंदर और चमकदार हो जाएगा। इसे एक सप्ताह तक हर रोज प्रयोग में लाए। बाद में सप्ताह में दो बार लगाते रहें।

- ददोड़े/शीत पित्ती- शरीर पर शीत पित्ती के ददोड़े या फुंसियाँ होने पर दिन में एक बार 20 ग्राम चिरौंजी को खूब चबा कर खाएँ। साथ ही दूध में चारोली को पीसकर इसका लेप करें। इससे बहुत फायदा होगा। यह नुस्खा शीत पित्ती में बहुत उपयोगी है।

- चारोली का तेल बालों को काला करने के लिए उपयोगी है।
- 5-10 ग्राम चारोली को पीसकर दूध के साथ लेने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) में लाभ होता है।
- खांसी में चिरौंजी का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से लाभ मिलता है।
- छठवें महीने के गर्भाशय के रोग: चिरौंजी, मुनक्का और धान की खीलों का सत्तू, ठण्डे पानी में मिलाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भ का दर्द, गर्भस्राव आदि रोगों का निवारण हो जाता है।

Ayurveda ·

दूध असल में अत्यधिक कामोत्तेजक आहार

है और मनुष्य को छोड़कर पृथ्वी पर कोई

पशु इतना कामवासना से भरा हुआ

नहीं है। और उसका एक कारण दूध है।

क्योंकि कोई पशु बचपन के कुछ समय के

बाद दूध नहीं पीता, सिर्फ

आदमी को छोड़ कर। पशु को जरूरत

भी नहीं है। शरीर का काम

पूरा हो जाता है। सभी पशु दूध

पीते है अपनी मां का, लेकिन

दूसरों की माताओं का दूध सिर्फ

आदमी पीता है और वह

भी आदमी की माताओं

का नहीं जानवरों की माताओं

का भी पीता है।

दूध बड़ी अदभुत बात है, और

आदमी की संस्कृति में दूध ने न मालूम

क्या-क्या किया है,

इसका हिसाब लगाना कठिन है।

बच्चा एक उम्र तक दूध पिये,ये नैसर्गिक

है। इसके बाद दूध समाप्त

हो जाना चाहिए। सच तो यह है,

जब तक मां का स्तन से बच्चे को दूध मिल

सके, बस तब तक ठीक हे। उसके बाद दूध

की आवश्यकता नैसर्गिक नहीं है। बच्चे

का शरीर बन गया। निर्माण

हो गया—दूध की जरूरत थी,

हड्डी थी, खून था, मांस बनाने के

लिए—स्ट्रक्चर पूरा हो गया,

ढांचा तैयार हो गया। अब

सामान्य भोजन काफी है। अब

भी अगर दूध दिया जाता है तो यह

सार दूध कामवासना का निर्माण

करता है। अतिरिक्त है। इसलिए

वात्सायन ने काम सूत्र में कहा है

कि हर संभोग के बाद पत्नी को अपने

पति को दूध पिलाना चाहिए।

ठीक कहा है।

दूध जिस बड़ी मात्रा में वीर्य

बनाता है, और कोई चीज

नहीं बनाती। क्योंकि दूध जिस

बड़ी मात्रा में खून बनाता है और

कोई चीज नहीं बनाती। खून

बनता है, फिर खून से वीर्य बनता है।

तो दूध से निर्मित जो भी है, वह

कामोतेजक है। इसलिए महावीर ने

कहा है,वह उपयोगी नहीं है।

खतरनाक है, कम से कम ब्रह्मचर्य के साधक

के लिए खतरनाक है। ठीक से,काम सुत्र

में और महावीर की बात में कोई

विरोध नहीं है। भोग के साधक के

लिए सहयोगी है, तो योग के साधक

के लिए अवरोध है। फिर पशुओं का दूध है

वह, निश्चित ही पशुओं के लिए,उनके

शरीर के लिए, उनकी वीर्य ऊर्जा के

लिए जितना शक्ति शाली दूध

चाहिए। उतना पशु मादाएं

पैदा करती है।

जब एक गाए दूध पैदा करती है

तो आदमी के बच्चे के लिए

पैदा नहीं करती, सांड के लिए

पैदा करती है। ओर जब

आदमी का बच्चा पिये उस दूध को और

उसके भीतर सांड

जैसी कामवासना पैदा हो जाए,

तो इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। वह

आदमी का आहार नहीं है। इस पर अब

वैज्ञानिक भी काम करते है। और आज

नहीं कल हमें समझना पड़ेगा कि अगर

आदमी में बहुत सी पशु प्रवृतियां है

तो कहीं उनका कारण पशुओं का दूध

तो नहीं है। अगर उसकी पशु

प्रवृतियों को बहुत बल मिलता है

तो उसका करण पशुओं का आहार

तो नहीं है।

आदमी का क्या आहार है, यह अभी तक

ठीक से तय नहीं हो पाया है, लेकिन

वैज्ञानिक हिसाब से अगर आदमी के

पेट की हम जांच करें,

जैसाकि वैज्ञानिक किये है। तो वह

कहते है , आदमी का आहार

शाकाहारी ही हो सकता है।

क्योंकि शाकाहारी पशुओं के पेट में

जितना बड़ा इंटेस्टाइन की जरूरत

होती है, उतनी बड़ी इंटेस्टाइन

आदमी के भीतर है।

मांसाहारी जानवरों की

इंटेस्टाइन छोटी और

मोटी होती है। जैसे शेर, बहुत

छोटी होती है। क्योंकि मांस

पचा हुआ आहार है, अब बड़ी इंटेस्टाइन

की जरूरत नहीं है। पचा-पचाया है,

तैयार है। भोजन। उसने ले लिया, वह

सीधा का सीधा शरीर में लीन

हो जायेगा। बहुत छोटी पाचन यंत्र

की जरूरत है।

इसलिए बड़े मजे की बात है कि शेर

चौबीस घंटे में एक बार भोजन

करता है। काफी है। बंदर

शाकाहारी है, देखा आपने उसको।

दिन भर चबाता रहता है।

उसका इंटेस्टाइन बहुत लंबी है। और

उसको दिन भर भोजन चाहिए।

इसलिए वह दिन भर

चबाता रहता है।

आदमी की भी बहुत मात्रा में एक

बार एक बार खाने की बजाएं,

छोटी-छोटी मात्रा में बहुत बार

खाना उचित है। वह बंदर का वंशज है।

और

जितना शाकाहारी हो भोजन

उतना कम उतना कम कामोतेजक हे।

जितना मांसाहारी हो उतना

कामोतेजक होता जाएगा।

दूध मांसाहार का हिस्सा है। दूध

मांसाहारी है, क्योंकि मां के खून

और मांस से निर्मित होता है।

शुद्धतम मांसाहार है। इसलिए जैनी,

जो अपने को कहते है हम गैर-

मांसाहारी है,

कहना नहीं चाहिए, जब तक वे दूध न

छोड़ दे।

केव्कर ज्यादा शुद्ध शाकाहारी है

क्योंकि वे दूध नहीं लेते। वे कहते है, दूध

एनिमल फूड हे। वह

नहीं लिया जा सकता। लेकिन दूध

तो हमारे लिए पवित्रतम है, पूर्ण

आहार है। सब उससे मिल जाता है,

लेकिन बच्चे के लिए, और वह

भी उसकी अपनी मां का। दूसरे

की मां का दूध खतरनाक है। और बाद

की उम्र में तो फिर दूध-मलाई और

धी और ये सब और उपद्रव है। दूध से निकले

हुए। मतलब दूध को हम और भी कठिन करते

चले जाते है, जब मलाई बना लेते है। फिर

मक्खन बना लेते है। फिर घी बना लेते

है। तो घी शुद्धतम

कामवासना हो जाती है। और यह

सब अप्राकृतिक है और

इनको आदमी लिए चला जाता है।

निश्चित ही, उसका आहार फिर

उसके आचरण को प्रभावित करता है।

तो महावीर ने कहा है, सम्यक

आहार,शाकाहारी,बहुत पौष्टिक

नहीं केवल उतना जितना शरीर

को चलाता है। ये सम्यक रूप से

सहयोगी है उस साधक के लिए,

जो अपनी तरफ आना शुरू हुआ।

शक्ति की जरूरत है, दूसरे की तरफ जाने

के लिए शांति की जरूरत है, स्वयं

की तरफ आने के लिए।

अब्रह्मचारी,कामुक शक्ति के उपाय

खोजेगा। कैसे शक्ति बढ़ जाये।

शक्ति वर्द्धक दवाइयां लेता रहेगा।

कैसे शक्ति बढ़ जाये।

ब्रह्मचारी का साधक कैसे

शक्ति शांत बन

जाए,इसकी चेष्टा करता रहेगा। जब

शक्ति शांत बनती है तो भीतर

बहती है। और जब शांति भी शक्ति बन

जाती है तो बाहर बहनी शुरू

हो जाती है।