Monday, January 18, 2016

अलसी एक चमत्कारिक औषधि

अलसी एक चमत्कारिक औषधि

                       भारत देश के कुछ प्रांतों में अलसी का तेल खाद्य तेलों के रूप में आज भी प्रचलन में है। धीरे-धीरे अलसी को हम भूलते जा रहे हैंपरंतु अलसी पर हुए नए शोध-अध्ययनों ने बड़े चमत्कारी प्रभाव एवं चैंकाने वाले तथ्य दुनिया के सामने लाए हैं। आज सारे संसार में इसके गुणगान हो रहे हैं। विशिष्ट चिकित्सकों की सलाह में भी अलसी के चमत्कारों की महिमा गाई जा रही है।
                        गुणधर्म-अलसी एक प्रकार का तिलहन है। इसका बीज सुनहरे रंग का तथा अत्यंत चिकना होता है। फर्नीचर के वार्निश में इसके तेल का आज भी प्रयोग होता है। आयुर्वेदिक मत के अनुसार अलसी वातनाशकपित्तनाशक तथा कफ निस्सारक भी होती है। मूत्रल प्रभाव एवं व्रणरोपणरक्तशोधकदुग्धवर्द्धक,ऋतुस्राव नियामकचर्मविकारनाशकसूजन एवं दरद निवारकजलन मिटाने वाला होता है। यकृतआमाशय एवं आँतों की सूजन दूर करता है। बवासीर एवं पेट विकार दूर करता है। सुजाकनाशक तथा गुरदे की पथरी दूर करता है। अलसी में विटामिन बी एवं कैल्शियममैग्नीशियमकापरलोहाजिंकपोटेशियम आदि खनिज लवण होते हैं।इसके तेल में 36 से 40 प्रतिशत ओमेगा-3 होता है।
विभिन्न रोगों में उपयोग
         गाँठ एवं फोड़ा होने पर-अलसी में व्रणरोपण गुण है। गाँठ या फोड़ा होने पर अलसी को पीसकर शुद्ध हलदी पीसकर मिला दें। सबको एक साथ मिलाकर आग पर पकाएँ फिर पान के हरे पत्ते पर पकाया हुआ मिश्रण का गाढ़ा लेप लगाकर सहने योग्य गरम रहेतब गाँठ या फोड़ा पर बाँध दें। दरदजलन,चुभन से राहत मिलेगी और पाँच-छह बार यह पुलटिश बाँधने पर फोड़ा पक जाएगा या बैठ जाएगा। फूटने पर विकार पीव (बाहर) निकल जाने पर कुछ दिनों तक यही ठंढी पुलटिश बाँधने पर घाव जल्दी भरकर ठीक हो जाता है।
            त्वचा के जलने पर-आग या गरम पदार्थों के संपर्क में आकर त्वचा के जलने या झुलसने पर अलसी के शुद्ध तेल में चूने का साफ निथरा हुआ पानी मिलाकर खूब घोंट लेने पर सफेद रंग का मलहम सा बन जाता है। इसे लगाने पर पीड़ा से राहत मिलती हैठंडक की अनुभूति होती है तथा घाव ठीक होने लगता है।
 हिस्टीरिया की बहोशी में-अलसी का तेल 2-3 बूँद नासिका में डालने से बेहोशी दूर होती है।
         हैजा में-40 ग्राम उबलते पानी में 3 ग्राम अलसी पीसकर मिला दे  यह पानी ठंढा होेने पर छानकर आधा-आधा घंटे में तीन खुराक पिलाएँ। यह प्रक्रिया दिन में कई बार दोहराएँ। इससे लाभ होता है।
            पुराने जुकाम में-40 ग्राम अलसी के बीजों को तवे पर सेंककर पीस लेंइसमें बराबर मात्रा में मिसरी पीसकर मिला लेंदोनों को एक साथ मिलाकर शीशी में भरकर रखेंइसकी 4 ग्राम की मात्रा को गरम पानी के साथ कुछ दिनों तक लेने से कफ बाहर निकल जाता है। अलसी का कफ निस्सारक गुण होने से सारा कफ-विकार बाहर निकल जाता है। फेफड़े स्वस्थ हो जाते हैं और जुकाम से मुक्ति मिलती है।
            क्षय रोग में-24 ग्राम अलसी के बीजों को पीसकर 240 ग्राम पानी में (शाम के समय) भिगोकर रखें। प्रातः गरम कर छान लें तथा आधा नीबू निचोड़कर नीबू रस मिला लें और सेंवन करें। यह नियमित प्रयोग क्षय रोग में लाभकारी होता है।
            दमा (अस्थमा में)-6 ग्राम अलसी को कूट-पीसकर 240 ग्राम पानी में उबालेंजब आधा पानी शेष रहेतब उतारकर 2 चम्मच शहद मिलाकर चाय की तरह गरमागरम सेवन कराने से श्वास की तकलीफ दूर होती है। खाँसी मिटती है।
            सुजाक एवं पेशाब की जलन में-अलसी के बीजों को पीसकर बराबर मात्रा में मिसरी मिलाकर 3 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार सेवन कराने से लाभ होता है। अलसी के तेल की 3-4 बूँद मूत्रेंद्रिय में डालने से लाभ होता है। पर्याप्त मात्रा में पानी पीना चाहिए। गरम प्रकृति के खाद्य एवं गरम मसालों से बचना चाहिए।
            रीढ़ की हड्डी में दरद-अलसी तेल में सोंठ का चूर्ण डालकर पकाएँ और छानकर ठंढा कर तेल को शीशी में रखें। इस तेल से रीढ़ की नियमित मालिश करने से लाभ होता है।
            गुदा के घाव पर-अलसी को जलाकर भस्म बनाकर गुदा के घाव पर बुरकने दें घाव शीघ्रता से भरता है।
            माँ के दूध में कमी-शिशु को स्तनपान कराने वाली माताओं को दूध में कमी होने पर 30 ग्राम अलसी को भूनकरपीसकरआटा में मिलाकर रोटी बनाकर खिलाने से माँ का दूध बढ़ने लगता है। 
            कानों की सूजन में-अलसी के तेल में प्याज का रस डालकर पकाएँ। जब तेल शेष रहेतब उतारकर ठंढा करके शीशी में तेल सुरक्षित रखें। जब आवश्यकता पड़े थोडा सा तेल हलका गरम करके रूई के सहारे कान में 2-2 बूँद टपका दें। (स्मरण रहे तेल सहने योग्य हलका गरम रहे) इससे कान के दरद एवं सूजन में लाभ होता है।    
    रोग अनेक-नुसखा एक-(गठियामधुमेहहृदय रोगउच्च रक्तचापकब्जदमाभगंदरलीवर की सूजनहार्ट ब्लाकेजआँतों की सूजनकैंसरप्रोस्टेट ग्रंथि का बढ़नात्वचा के रोगदादखाजखुजलीएग्जिमामुँहासेझाई आदि रोगों में उपयोगी।)
            उपरोक्त रोगों में 60 प्रतिशत से अधिक लाभ होने के जर्मनी में हुए इन दिनों शोध-अध्ययनों के आधार पर यह साधारण सा सरल प्रयोग जन-जन के लिए प्रस्तुत किया जा रहा है।
          विधि-30 ग्राम अलसी को बिना तेल डाले कढ़ाई में हलका सेक लें और पीसकर आटे में मिलाकर रोटी बनाकर सेवन करें। नियमित रूप में यह क्रम बनाना होगा। (अलसी को प्रतिदिन भूनकर प्रतिदिन पीसना चाहिए।) अलसी को पीसकर सब्जी या दही में मिलाकर भी सेवन कर सकते है।


अलसी के चमत्कारी प्रभाव


            अलसी में एक पौष्टिक तत्त्व लिगनेन होता हैजिसकी अन्य खाद्य पदार्थों से सैकड़ों गुना अधिक मात्रा अलसी में पाई जाती है। यह लिगनेन नामक तत्त्व एंटी बैक्टीरियलएंटीवायरलएंटी फंगल तथा एंटी कैंसर होता है। अलसी प्रोस्टेटबच्चादानीस्तनआँत और त्वचा के कैंसर में बहुत उपयोगी है। अलसी के चमत्कारी प्रभाव को बढ़ाने वाला दूसरा बड़ा तत्त्व ओमेगा-3 का पर्याप्त मात्रा में होना है। ओमेगा-3 आँख और मस्तिष्क के लिए तथा स्नायुसंस्थान (नर्वस सिस्टम) के सुसंचालन के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। स्मरणशक्ति के विकास के लिए भी अलसी गुणकारी होती है। ओमेगा-3 रोग प्रतिरोधक एवं जीवनीशक्ति संवर्द्धक है। नेत्र ज्योति बढ़ाने का गुण भी है। ओमेगा-3 अलसी के अतिरिक्त बादाम एवं अखरोट आदि में भी होता है। ओमेगा-3 की कमी से मधुमेहउच्च रक्तचापसंधिवातगठियामानसिक अवसादमोटापाकैंसर आदि रोगों की शुरुआत होती है। ओमेगा-3 की कमी से सूजनजलन पैदा होती है। शरीर में ओमेगा-6 की भी आवश्यकता होती हैपरंतु ओमेगा-6 की अधिकता उपरोक्त रोगों को बढ़ाती है। अमेरिका में हुए रिसर्च में पाया गया है कि अलसी में 20 से ज्यादा कैंसररोधी तत्त्व होते है। अलसी को कब्ज-निवारण में ईसबगोल की भूसी से अधिक प्रभावकारी पाया गया है। 30 से 40 ग्राम अलसी का नित्य सेवन करके ओमेगा-3 की पूर्ति की जा सकती है। अलसी शरीर के ताप को संतुलित बनाए रखती है। गरमी में भी शरीर में शीलता बनाए रखती है। मन को शांति एवं प्रसन्नता देती है। अलसी लाभकारी कोलेस्ट्राॅल ;भ्ण्क्ण्स्ण्द्ध को बढ़ाती है तथा हानिकारक ;स्ण्क्ण्स्ण्द्ध कोलेस्ट्राॅल को कम करती हैजिससे हृदय की धमनियों में खून के थक्के बनने से रोकती है। हार्टअटैक जैसे रोगों से बचाती है।

    छोटे बच्चों को होने वाली बीमारियाँ दस्तएलर्जीअस्थमानाक,कान के इन्फैक्शन आदि रोग ओमेगा-3 की कमी से होते हैं। अलसी रक्तशर्करा को नियंत्रित करती है। बालनाखून एवं त्वचा को स्वस्थ रखने में भी अलसी प्रभावकारी होती है। जर्मनी की ख्यातिलब्ध वैज्ञानिक डाॅ. जोहाना बुडबिग ने अलसी के तेल एवं पनीर के सेवन से उपचार कर 60 प्रतिशत से अधिक सफलता पाई थी। डा. जोहाना ने ऐसे रोगियों को उपचार कर ठीक कियाजिनको चिकित्सकों ने यह कहकर डिस्चार्ज कर दिया था कि अब कोई इलाज नहीं बचा।  डा.  जोहाना का नाम सात बार नोबल पुरस्कार के लिए चयनित कियापरंतु उन्हें यह पुरस्कार इसीलिए नहीं मिलाकि उन्होंने यह शर्त मानने से इनकार किया कि कैंसर के रोगी को अलसी एवं पनीर के साथ-साथ रेडियोथेरेपी एवं कीमोथेरेपी भी काम में लंेगी। डाॅ. जोहाना ने अलसी एवं पनीर के प्रयोग से ही कैंसर के कई रोगियों को पूर्ण स्वस्थ किया है। अलसी को बाॅडी बिल्डर एवं स्टारफुड भी कहा गया है। इसमें 24 प्रतिशत आवश्यक एमिनो एसिड्स युक्त अच्छे प्रोटीन तत्त्व होते हैंजो मांसपेशियों के विकासगठन के लिए जरूरी है। अलसी मांसपेशियों की थकावट दूर करती है। अलसी नामर्दीनपुंसकताप्रोस्टेट की बीमारियों को दूर करने में भी उपयोगी होती है। पित्त की थैली में पथरी बनने की प्रक्रिया रोकती है। पथरी होने पर पथरी घुलने लगती है। इतने अनेक उपयोगी गुण होने के कारण आज अलसी को सुपर स्टार फूड कहा जाने लगा है।

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